Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 463
________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। ४१९ लिए लवणने और अंकुशने बहुत बाण मारे; परन्तु वह नहीं रुका। वह वेग पूर्वक आ अंकुशके प्रदक्षिणा दे, वापिस लक्ष्मणके हाथमें चला गया । जैसे कि, पक्षी अपने घौंसलेमें आते हैं । लक्ष्मणने दूसरीवार और चलाया। दूसरीवार भी वह उसी भाँति अंकुशके प्रदक्षिणा देकर, वापिस लक्ष्मणके हाथमें चला गया; जैसे कि छूटा हुआ हाथी वापिस अपने ठाणमें-गजशालामें-चला जाता है। - यह देखकर, रामलक्ष्मण सखेद विचार करने लगे:"क्या ये ही दोनों कुमार भरतक्षेत्रमें बलदेव और वासुदेव हैं ? हम नहीं हैं ?" वे इस तरह विचार रहे थे, उसी समय नारद मुनि सिद्धार्थ सहित वहाँ आये । उन्होंने खेदित रामलक्ष्मणसे कहा:-" हे रघुनाथजी ! इस हर्षके स्थानमें तुम खेद कैसे कर रहे हो ? ये दोनों तुम्हारे पुत्र हैं। सीताकी कूखसे इनका जन्म हुआ है । नाम इनके लवण और अंकुश हैं । युद्धके बहाने ये तुम्हें देखनेके लिए आये हैं । ये तुम्हारे शत्रु नहीं हैं । तुम्हारा चक्र उनपर नहीं चला । इसका यही कारण है कि, वे तुम्हारे शत्रु नहीं हैं । प्राचीन समयमें भी बाहुबलिपर भरतका चक्र नहीं चला था।" ' तत्पश्चात नारदने सीताके त्यागसे लेकर, इस युद्धतक जगतको विस्मित करनेवाला वृत्तान्त कह सुनाया । उसको सुनकर आश्चर्य, लज्जा, हर्ष और शोकसे व्याकुल होकर

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