Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 465
________________ सीताकी शुद्धि और व्रतग्रहण। १२१ रामने वज्रजंघसे कहा:-" हे भद्र ! तुमने मेरे पुत्रोंका लालन पालन करके बड़ा किया और उन्हें इस स्थितिमें पहुँचाया, इस लिए तुम मेरे लिए भामंडलके समान हो।" __ तत्पश्चात रामलक्ष्मण अपने पुत्रों सहित पुष्पक विमानमें बैठकर, अयोध्याकी ओर चले । लोग विस्मयके साथ ऊँची गर्दनें कर, पंजोंपर खड़े हो लवण, अंकुशको देखते थे और उनकी स्तुति करते थे । राम अपने महलोंके पास पहुँचे। विमानमेंसे उतरकर अंदर गये। उन्होंने नगरमें पुत्रागमनका बहुत बड़ा महोत्सव कराया। __एक वार लक्ष्मण, सुग्रीव, विभीषण, हनुमान और अंगद आदिने मिलकर रामसे विनती की:-" हे राम ! देवी सीता आपके विरहका दुःख झेलती हुई विदेशमें अपने दिन निकाल रही हैं। अब कुमारोंका वियोग हो जानेसे वे और भी ज्यादा दुखी होंगी । इसलिए यदि आप आज्ञा दें, तो हम उनको यहाँ ले आवें । यदि आप उन्हें यहाँ नहीं बुलायँगे तो पति, पुत्र विहीना सीता मर जायँगी। रामने जरासी देर सोचा और कहा:-" सीता ऐसे ही कैसे बुलाई जा सकती है ? लोकापवाद मिथ्या होने पर भी वह बहुत बड़ा अन्तराय है । मैं जानता हूँ कि सीता सती है । वह भी अपने आत्माको पवित्र मानती है, सारे लोगोंके सामने सीता दिव्य करे । फिर मैं उस शुद्ध सतीको ग्रहण कर लूँगा।"

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