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________________ रावण वध । ३५७ ....................... ~mmmmmmmmmmmm उसी समय आकाशमंडलको प्रकाशित करती हुई बहु रूपिणी विद्या प्रकट हुई । विद्या बोली:-" हे रावण, मैं तुझे सिद्ध हुई हूँ। बता मैं क्या कार्य करूँ ? मैं सारे संसारको तेरे आधीन कर सकती हूँ । फिर राम और लक्ष्मण तो हैं ही कौन चीज ?" रावणने कहा:-“हे विद्या! यह ठीक है कि, तेरे लिए सब कुछ साध्य है; परन्तु इस समय मुझको तेरी आवश्यकता नहीं है । इस समय तू जा । जिस समय तुझे बुलाऊँ तब आना।" रावणकी बात सुनकर विद्या अन्तधान होगई । सारे वानर भी पवनकी तरह उड़कर अपनी छाम्नीमें चले गये। रावणका वध। रावणने मंदोदरीकी दुर्दशाका हाल सुना। उसने कोषसे दाँत पीसे । फिर स्नान भोजनसे निवृत्त होकर वह देवरमण उद्यानमें सीताके पास गया और बोला:-" हे सुन्दरी ! मैं बहुत दिनोंतक तुझसे अनुनय विनय करता रहा; परन्तु तूने उपेक्षा की । अब मैं नियमभंगका भय छोड़, राम और लक्ष्मणको मार, तेरे साथ जबर्दस्तीसे क्रीडा करूँगा।" रावणकी विषमय बातें सुन, रावणकी आशाकी तरह ही जानकी मूञ्छित होकर भूमिपर गिर गई। थोड़ी वारमें
SR No.010289
Book TitleJain Ramayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages504
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size31 MB
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