Book Title: Jain Ramayana
Author(s): Krushnalal Varma
Publisher: Granthbhandar Mumbai

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Page 450
________________ ४०६ जैन रामायण नवाँ सर्ग ! ............. . . wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwimm खुशीसे भी विशेष खुशी मनाई । उसने .उनके जन्म और नामकरणके महोत्सव किये । धाएँ उनका लालन पालन करने लगीं। लीलासे दुर्ललित-दुष्टचेष्टित-दोनों भ्राता भूचारी अश्विनीकुमारोंकी भाँति दिनबदिन बड़े होने बगे। थोड़े बरसों बाद ये दोनों बालक बाल-कला ग्रहण करने और हाथीके बच्चे की तरह शिक्षा करनेके योग्य होकर, राजा वज्रजंघकी आँखोंको महोत्सवके समान आनंदित करने लगे। . _ उस समय सिद्धार्थ नामा एक अणुव्रतधारी सिद्धपुत्र-जो विद्याबळकी समृद्धिसे सम्पूर्ण और कलाओंमें व शास्त्रों में विचक्षण थे और आकाशगामी होनेसें त्रिकाल मेलगिरि ऊपरके चैत्योंकी यात्रा करते थे-भिक्षाके लिए सीताके घर आये । सीताने आहार पानीसे श्रद्धा पूर्वक उनका सत्कार किया और उनसे उनके सुखविहार पूछे उन्होंने कहा और फिर सीतासे उनका वृत्तान्त पूछा। सीताने उनको, भाईके समान समझ, प्रारंभसे पुत्रोत्पत्ति पर्यन्त सारा वृत्तान्त कह सुनाया । सुनकर, अष्टांगनिमितको जाननेवाले दयानिधि सिद्धार्थने उत्तर दियाः" तुम क्यों वृथा चिन्ता करती हो ? क्योंकि लवण और अंकुशके समान तुह्मारे दो पुत्र हैं। श्रेष्ठ लक्षणवाले के दूसरे राम, लक्ष्मण हैं। वे तुमारे सारे मनोरथोंको पूर्ण करेंगे।" इस भाँति उन्होंने सीताको आश्वासन दिया।

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