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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग।
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लिए संकेतानुसार सिंहनाद करनेपर राम यदि लक्ष्मणके पास जाय, तो फिर सीताका हरण सरलतासे हो सकता है।"
रावणने ऐसा करनेकी आज्ञा की । इससे विद्याने दूर जाकर साक्षात लक्ष्मणके समान सिंहनाद किया।
सिंहनाद सुनकर राम सोचने लगे-यद्यपि हस्तिमल्लकी तरह मेरे अनुजका कोई प्रतिमल्ल नहीं है। लक्ष्मणको संकटमें डालनेवाला कोई भी पुरुष पृथ्वीमें नहीं है तो भी संकेतानुसार उसका यह सिंहनाद कैसे सुनाई दे रहा है ? __ इस प्रकारके तर्क वितर्क करते हुए महा मनस्वी राम व्यग्र हो उठे । उसी समय लक्ष्मणके प्रति सीताका जो वात्सल्य भाव था उसको व्यक्त करती हुई वे बोली:-" हे आर्यपुत्र ! वत्स लक्ष्मण संकटमें पड़े हुए हैं, तो भी आप उनके पास जानेमें कैसे विलंब कर रहे हैं ? शीघ्र ही जाकर वत्स लक्ष्मणकी रक्षा कीजिए।"
सीताके इस प्रकारके वचनोंसे और सिंहनादसे प्रेरित होकर राम शकुनकी कुछ परवाह न कर शीघ्रताके साथ लक्ष्मणके पास गये।
समय देख रावण तत्काल ही विमानसे नीचे उतरा और रुदन करती हुई जानकीको पकड़ कर विमानमें बिठाने लगा। जानकीको रोते सुन, “ हे स्वामिनी कुछ डर नहीं है। मैं आ पहुँचा हूँ। अरे निशाचर ! खड़ा रह