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जैन रामायण पाँचवाँ सर्ग ।
सुनकर लक्ष्मणकी कोपसे आँखे लाल हो आईं, उनके होठ फड़कने लगे। वे बोले:-" रे मूर्ख ! क्या तू राजा भरतको नहीं जानता ? ले इसी समय मैं उनकी पहिचान करा देता हूँ। उठ, युद्धके लिए तैयार हो । चंदन गोकी भाँति तू अबतक मेरी भुजारूपी वज्रसे ताडित नहीं हुआ है, इसी लिए ऐसे बोलता है। __ सुनकर सिंहोदर, बालक जैसे भस्म-राखसे दबी हुई अनिको स्पर्श करनेके लिए तत्पर होता है. वैसे ही, लक्ष्मणसे युद्ध करनेको-लक्ष्मणको मारनेको-सेनासहित तैयार हुआ। __ लक्ष्मण अपनी भुजाओंसे, कमलनालके समान, हाथीके बाँधनेके स्तंभको उखाड़-दंड ऊपर उठाए हुए यमराजाकी भाँति-उसके द्वारा शत्रुओंको मारने लगे । फिर उन महाबाहुने उछलकर हाथीपर बैठे हुए सिंहोदरको, उसीके कपड़ेसे, गलेमेंसे बाँध लिया; जैसे कि, कोई पशुको बाँध लेता है।
दशांगपुरके लोग आश्चर्यसे देखते रहे; और लक्ष्मण उसको खींचकर रामचंद्रके पास ले गये । रामको देख, सिंहोदरने नमस्कार किया, और कहा:-" हे रघुकुलनायक! मैं नहीं जानता था कि आप यहाँ पधारे हैं। अथवा हे देव ! मेरी परीक्षा करनेके लिए आपने ऐसा किया है ? देव! यदि आप ही अपना पराक्रम दिखानेको