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रावणका दिग्विजय ।
२९ mmmmmmmmmmmmmmmmmmm धर कुमारोंके रूपगुणकी जाँच की, मगर मंदोदरीके योग्य एक भी वर उसकी दृष्टिमें नहीं आया । इससे वह बहुत चिन्तित रहने लगा । एक दिन उसके मंत्रीने कहा:-- "स्वामिन् ! दुःख न कीजिए । रत्नश्रवाका बली और रूपवान पुत्र दशमुख कन्याके लिए योग्य वर है । पर्वतोंमें जैसे मेरु वैसे ही, विद्याधर कुमारोंमें वह सहस्र विद्याओंका साधक कुमार है; उस बलीको देवता भी चलित नहीं कर सकते हैं" । मयने प्रसन्न होकर कहा:"ठीक है।" फिर मय अपने परिवारको ले, सेनासे सुसज्जित हो मन्दोदरी रावणको अर्पण करनेके लिए स्वयं-. प्रभ नगरमें गया । पहुँचनेके पहिले उसने अपने आनेकी खबर करवा दी । सुमाली आदिने मंदोदरीके साथ रावण-- का संबंध करना स्वीकार कर लिया। शुभ दिवस देखकर बड़े ठाटके साथ उनका विवाह-संस्कार पूरा कराया गया। मय विवाहोत्सव समाप्तकर अपने परिवार सहित निज नगरको चला गया। रावण सुन्दरी मंदोदरीके साथ आनंदपूर्वक क्रीड़ा करने लगा। .
एकवार रावण मेघरव नामक पर्वतपर क्रीड़ा करने गया । पर्वत मेघोंके झुके रहनेसे ऐसा प्रतीत होता था कि मानो वह पाँखोंवाला है । वहाँ एक सरोवर था। उसकी शोभा क्षीरसागरके समान थी। दशाननने उस. में अप्सराके समान रूपवाली एक हजार खेचरकन्या