Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 399
________________ (३७५ , ॥ जय चतुर्थपई॥ ॥प्रलुलन्नेतुभताउनाभघरायो,तोतास्यो भोही यहीयप नयाणप्यार साहिल भेरीमरननेही पत्नुशासोओनच यापुनातु लहानमान्ने प्रत्नछतुभभोहि पिसारो तोपडे होयरहीमोमगाशाभोसें पतितशुषाभहन्नूरी, अवरन पूलेबहिन यातुमहीपतितपोध्यारनतारन,अपनो जिरीनिवहियानगागप |सुविधि निनेश्वर माहिषनैसें, भरन हालुंडरियगहरनपंसेच सीखन्न,जांहग्रहे निस्तरिया मलुगागातिए ॥ अथ पंथम पर। ॥जानणध्यघरसंपध,पूल्योऋपलनिएंशापटपटसंपध|| संपरै,नित्य होयनानंघामानापापातसभयनालिनंपाणि नयन्नूहाशाअष्टरिध्यनपनि धसही हादर होयचारोब्जानगाशा प्रिनुलानामशुंपुजटले,नासे सजवणानन्मलोंभानंभे, भन्न पंछित लोगाभानगागारिध्वजनंतीपाभीयेशुष्यभनतपतपता स्वर्णभुगतिपाभेसही मीनिनवरनपतावामानाचा तिा ॥ ॥ जयषष्ठ प॥ ॥रेलयातिनधर्भडीलय घरमनाचारभारााटेगाधनशीयप|| तपलावना,नगमें मेटलोसायरेलवनपावरसविसनेपारणेला श्वरसुजगाररस बहोराचीजो,श्रीश्रेयांसउभाशारेलवगार एपिंपाजारणघाडिया,पालएी घट्युनीयासतियसुलानशपाया। शीलेंसुरगिरिधीशरेलवनाशातपउरीअथाशोषवी,मरसनीर समाहाशाचीरलिएंडेवजागीलो,धन धन्नोजएशाशारेलवणा पगाजनित्यलावनालावतो,घरतो निश्वसध्यानालस्त जारीसा लवन ,पाभ्यो डेवलज्ञानारेलपणापाबैन धर्मसुरतीसमोनेहा Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrar larg

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