Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ४७७ )
पोतानो जाल अगाधाति
॥ अथ निग्ननव अंग पूलना होहा ॥ ॥ न्ग्स लरिसंपुष्ट पत्रमां, युगसिङ नर पूनंतऋषल पराजं गुडो, हाथ लवन्ग्स अंत ॥शान्ननु जसें अवीस्सग्ग रह्या. विधस्या देश विदेश । जडां जडां डेवल सयुं, पून्लेन्ननु नरेश शालोअंतिङचधनें उरी, परश्या चरशी घन ॥ उरझंडे मलु पून्ना, पूले लविजहुभाना भानगयुं होय अंशथी, हेजीवीर्यजनंतालुन्नजते लवन्स तस्या, पूने जंध महंत ॥नासिष्यशिषागुएजेन्सी, सोमंतें लगवंतावसि यातेणें अश्एा लवि, शिरशिजा पूनंत ॥पातीर्थडर पर पुएयथी, ति हुश्नएान्न सेयंता त्रिलुपन तिसङ सभा प्रलु, लास तिस नयवंत शाशोस पहोर प्रलुदेशना, उंचिवर वर्त्तुसामधुरध्वनि सुरनरसु ऐो, तेणेंगसे तिसङ अभूस ॥हृघ्यम्भल डीपशम जसे, जास्या राणने शेषराहीम हे वन जंडने, हृध्य तिसङ संतोषागारलत्रयीशु एजेन्सी, सम्स सुगुए। विशराभानालिङभलनी पूनना, उरत विश्वस धाम ॥लाडीपट्टेशङ नव तत्त्वना, तेएो नव मंगनियांघा पूले जहुविध रागथी, उहे शुलवीर शिंघाषणा ॥
॥ जय श्रीपार्श्वनाथनी भारती ॥
॥ भारती डीनें पास डुंबरडी, नन्म भरए। लय हर निनवरी नयरी बारसी नन्म उहावे, वामा भात प्रलुहुरावे ॥ नानाशाचौ चनचन इस लोगि एणाचे. नारि प्रलावती सती परएणाचे ॥डाथ निरो ग लोग विससावे, पुरिसाहाणी जिरह धरावे ॥ जाणाशाज्ञान चिसो डी ङभङ हुरावे, गहुन हुनथी इएगी निम्सावे ।। सेवङ भुजनवद्वारस एगावे, घरएाराय पध्वी निपन्नवे ॥जाना शाक्रोधी उमर हुतपलय सावे, निन दर्शनसें सुरगति पावे। लोग संयोग वियोग जनावे, संय भश्री मातम परएणावे ॥ नागानाध्यान सहेरियां ङाणीस्सगला वे, स्वाभिङ्गं वडस्य तव गवे ॥ मेघभासिन्सपर परसावे, न्जनासा
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