Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( 33 ) यसंगमत लागणावरे,प्रत्लु विननगनहितेरागातुंगतात्मवत्नवा भेउछूपेनन पायो, नवनसतटहें चेरावातुंगाशाराणाधिोष निवारणगरपाशुश्चयन पेतसजेशशातुंगामानंघनत्र मुपासशंजेश्वर, तुभ साहिलो भेरागतुंगा पति
॥जयषष्ठ प॥ ॥परन सरनपजीभ प्रलुथरनसरनपडभननुगा टेशाससिवित्नाव अलावन्नूर निर्भण सुभनिरीभगवान लवलपचास पस्योर्शनामिन,लभ्योयथा चक्रीएभिथ्यालावन संन भावी तुभरायित्तघरीरामगाशारसनरस्त रहतानि| शिवासरमागीलतिजासघरहोहटे प्रलु भेरे,चीनचेसंघहरी|
॥ अथ सप्तमपटं॥ ॥सभडित श्रावणमापोरी,भेरे घरसभडितमाटेडावीती|| उहत मिथ्यात श्रीष्मपारस सहन सुहायोशाजषभेरेगावाज नुलवामिनी भऽनपाणी,भोरसुभन एरजायोएजोल्यो विभलविउपपभोसुभती सोहागपीलायोमगाशालूल घूसडेभू से सूठत,सभरसनसनरल्यायोरीगलूघर निशोऽयुनना हेर, निन निश्चे घरपायोरीणाजगागा पता
॥ अथ प्रथमपटं। ॥रागरामडली होछमितेरीसुहावनसाणी,होणजितेरी। टेडशारन्मनगरवागारशीलेपनामवसेनसनगीहोगा एपिंतामणि चिंतासजन्यूरो, जयवंतीवडत्नागीहोछाशा|| ||हत हरजन्यंहसुणी भेरे प्रत्गुळतुभलेटेलयलागीहोछाउ,
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