Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 469
________________ ( ४४५ ) ॥ अथ जाहुजणलनी सञ्ञाय ॥ ॥ शन्ग्तएगारे ष्नति बॉलीया, लश्त जाहुजन झूमेरे।।मुंडी जी पाडीरे भारवा, जाहुजण प्रति जूझेरे । वीश भारा गन्थडी पीतरी, गन्ध डेडेवजन होयरे ॥ वीराणाशाऋषल हेव निहां भोडसे, जाहुजजलनी पासेंरे ॥ जंघव गनथडी जैतरो, ज्याली सुंदरी जेम लाभेरेगाचीणाशा सोच उरीने पारित्र सीखो, वणी भाव्यं जलिभानरेशलघुजंधवांन दुनहीं, डाडीस्सग्गरह्या शुलघ्यानरेगावी गाआवरस दिवसाडीरस रह्या, शिततापथी शूाएगारे | पंजीडे भाणा घालीग्जा, वेलडी जेंवींग एणारे गावीणान्नासाधवीनां वथन सुएगी उरी, श्रमज्यो चित्त भोजर हयगय रथ सहु परिहश्या, वणी जाग्यो जहंार रे गावीणापावैिराणें मनपाणीयुं, भूञ्ज्यु निन जलिभानरे॥ पारे पीपाड्यो वांध्वा, पीपन्युं ते जेवण ज्ञानरे॥वीणाशापो होता ने देवणी परजहा, जाहुजण भुनिरा खेरेशाजन्नराभर पथ्वी सर्छ, समयसुंदर वहे पाथरे गावीणाणा ऋषिनी सळ्ळाय ॥ ॥ अथ प्रसन्न ।। प्रभुं तुभारापाय, प्रसन्न यह प्रएाभुं तुमारा पायारान् छो डी रणीयाभएरे, नी जयिर संसारावैरागें भनवाणीयुंरे, सीघो संभलाशा महाभुंगाशा समशाने डाडीस्सग्ग रहीरे, पगडीपर पण चढाय ॥ जाडु जेबींची उरीरे सूरन सामी दृष्टि लगाया। प्रएाभुंगा दुर्भुज दूतवचनसुणीरे, शेप चढ्यो तताणा भनशुं संग्राम भांडीय रे, लव पज्यो नंन्नणाप्रनागमेलिङप्रश्न पूछे तसे रे, स्वामी जेहनीओओ एागति यायाालगवंत उहे हुवडां भरेतो, सातमी नरडेंन्नया प्रणानाक्ष एाग्नेजांतरे पुछीयुंरे, सर्वारथ सिष्य विभानाबाने हेवडी दुंदुलीरे,ऋषिपाभ्या ठेवण ज्ञानानायाप्रिसन्न हऋषिभुङतें गयारे, श्रीम हावीरना शिष्या रूपविन्य उहे धन्य धन्य, ही हाजे प्रत्यक्षामिणाना Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary org

Loading...

Page Navigation
1 ... 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504