Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४४७ )
लूषएानेन्न, जंग्न भग्न श्रीशाजपिन्नीं ॥ ज्याहु दुई सान्नभ नरंजन, घरे नही नएगहीडो वीडि से डरनामा लोली टोली होसी जेसन, जपने नाहुडे साथ । जसनीं ॥मती रान्नुस रेवत गिरि, संयम सर्व प्रिया हाथ ।। ङिसे अरणायाशिव मंदिरमें पासोडीनो नेमशन्नुस भली होया जसन्नीं॥ीित्तमसागर साहिज सेवे, नवनिपिऋध्पि सिध्धि होय । डिसेङनाशा
॥ राग धभास ॥ डोप्यो उभः प्रलुने हेजी, वर्षाविह्नर्विन्नेशाजन सन्नींग घोर घरा घनवीनह्योरे, जोसेछे हादुर भोशाशासजजे से होरी पासलथी हो । अहो मेरे ससनारे, वाभानी नंदन लेटीयें हो जे जांएगी।डारे जीरेवाहर मतवारे, परसे भूसल घाशाजसन्नी नीर चढ्यो भनु नासातांर्घ, रहेछे प्रलु निरघाशाग्नज जेसेनवाशा ततक्षएा घरोह नासन टुं प्यो, पेज्या जवधियें प्रलुसाशा जलिन्न ॥ धरणेंद्र पद्मावती प्रलुने नभीने, भांड्यं नृत्य रसालानिजजेसेनाआर्थंग मृदंग मधुर ध्वनिवान्त, नाचत ष्जभरनां वृंधाजसि न्नीं॥ लम्ति उरे सूरियाल हेवनन्युं, भेटे छे उश्मना धाजजजे सेनानालाल गुलाल जजिर पीडावत, गावतगीत घभाताजसि नीं ॥ततथे ततयेर्ध पडावत, जोसत नव नवज्याला जज जेसे गापा भहिन त्रिऽऽमन्तवन्नएयो, डोप्यो घरएगें हराया जसिन्नीं ।। ग्नपराध जभावा द्वारएा हूं, भावी नभ्यौमलुपायान जजेसेगाशनभी मलुल हूं घरें सज पौहोते, उत्यो स्वाभीविहाशा जसिन्नीं ॥ क्षेपड श्रेणी पेढी शुल येतन, पाये डेवल पहसाशाज जजेसे गाजा समेत शिजर प्रलुन शिव पोहोते, अक्षय स्थिति व्याजाघ । जसिन्नीं॥ पंडित घनविनय सुपसायें, सुज हेन्नेगी तभने निराजाध ॥ जज जेसे वाटला
॥ राग वसंत घभाल ।। नेभल व्याहु मनावन हो, यसी सज दृष्णङ्गी नाशाजविन्नीं॥ चिहुंहिंरीि घेरे नेभङ्गेहो, जोसे तिहांश
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