Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 479
________________ - ( ५५ । रजसोनेरीगाभागागारिनो पिया परदेशगभनीनो,ननात्रीन यान्नेजन भभातीभागाचाणिलीडार छत्तीयांपरन्नुरही, लिंगीयांभे नेवनन्नेररेरी मागापातनोगुभाननीयों होप्यारी,जोपडे घूघट हेजनहरीराभान हे शुभानी घेरुरी मागादति पोागिरि रायभारीघनारे, ग्निराहुभारीयंना शालयपुजवारण शिवसुनजरण,जतलयनहीं नाशाणि निगापानालिराया भरचीडोनन,प्रए ऋषलाग्निनारा गिरिगाशानिशिवासर मनुध्यानतभारो,निभातलियना रागिरिकायतुर कुशलउहेशरण तुभारो, सिध्यगिरिजर्भनि हिनागिरिमा न्निगाना ॥शघभावासातपांच सजीयनडीटोली,भिषि भलिजेष् तशगासिन्नणगारेवतगिरि नेभिसर गुन,गावत नवनवराणा एजतिन्नणाशिवाटेचीनंन भनवशोहोपायुमा युभार्थना भृशभडेशर,खासगुलालमणिशाजतिन्नालरलरडोरीसर जीटोरी,यो नेभिस शिशाजतिन्नाशिवागाशा गंमृधं गजीपांग भघुरघुनी,तापसात पिसाप्ताजसिन्नाटोसहर भालेरीनरी,वाती चेयरसालाजतिन्नाशिवागागायिंपड उितडीपाऽसन्न, सुरतरबृधाजसिन्नणंगनीलीभाषडयो पत्नु, पिय पियोभन्थहुंचानपिन्नीशियानाचाततये ततथे पहावत,गावतगीतधभालाजपिन्नानृत्य सूरियालचनन्युमभंगसलरीथालाजतिन्नाशिवान एपाराविधनह्मयारियशिरोमणिनाचीशमो निनाज खिन्नणापुएयप्रधान ध्यान नित्य घरता,सुभति सागर विनय घाजतिन्नाशिवाणादा ___॥शगागगरी लगतसीरलारी,गगरीणताररेचनभाली। - Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibretorg

Loading...

Page Navigation
1 ... 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504