Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 491
________________ ९ ४६७ ) भाशे ॥ घ्शलव बेरी ङभः उहोरी, साग्ने जनारशी नयी । हेरिहेर सा सामाजेगानगर सोङ सज वंदन थाले, गया वणी पार्श्वकुभानीराम जेतपशीपेंन्नरी॥पासलगाशा पंचाग्नि रीन्नेग साधत, वाघतल वन्ग्ण लारी ।। हेरिगाउभर उहे होए। अरए। वंहन, नाग निङाणा डारी ।। जराजाष्ट जिहारी ॥ पासलगाशापनंग पर नणतो हेजीसेवड, भुजसे हीयो नवहारी ॥ हरिणापास प्रलुन्कनुं हरिशन हेजी, हरिशन पायोशीअरी ॥थयो घरनी घर पति लारी ॥ पासलगाआसोअंतिम वयने जहुन्तने, ही घन जीने व्रतभारी ॥ हेरि गावड हेडें निशि अपीस्सग्ण घारी, इभग्ययो मेघ भाणी ॥उरे डीपसर्ग जपारी ॥ पास लगाना चिहुं हिशें घोर घनाघन गाने, पाने वाढी नपारी॥हेरिणा भुशणधारी वरसएा लागी, नाशा लगे जाव्यंवारी ॥नाये घरणीवर नारी ॥पासलगाया पद्मावती मेल्नु शिर पर धारी, रेएगी टोपডरे विसतारी ॥ हेरिणीपसर्ग हरी प्रलुग्भागे नाटङ, नाचे पद्मावती नारी जाने यंग तास सतारी ॥ पासलणाशा ध्यानानसें प्रलु अश्भजा सी, सहे हरिशन ज्ञान बीहारी ।उहे आनंद दुशण पहपाने, उरम प्रकृति सजगारी ॥वस्था शिववधू सरकारी । पासला जात ॥ न्निरान सहाय्यारी, न्निरान्गाने भांडणी॥शिवशंडरनगृहीश यिहानंह, न्ज्योति स्वरूप बीहारी । हेरि हेरि खासान्योगास जनिरंन्ग्न पीतराग तुभ, सण नंतु हितारी ॥ प्रलु तु रेणा घारी शन्निरान्नाशाग्जनंत गुणागर साहेज निग्नक, शासनडे शिरहारी हेरिगासुरनर मुनिन्ग्न ध्यान घरत नित्य, वीर प्रत्लु डीपगारील गीतभणएाधारी ॥ निनराननाशा जोगएणीस पथि माघशुहि पंचमी, सोमवार सुजारी । हेरिणान्जी जंदर संघ मिलत जहु, जोछवहु वो बीहारी॥थापना सर्व मनुहारी पन्निराननाआनाव सहित हरेपू नग्नपंधन, न्युं पामे लवपारी ॥ हेरिना हिलवऋष्पि वृष्पियशडीर ति, हिन हिनस्नपिङवधारी॥विनय उहे निन सुजारी॥ न्निराननाच Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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