Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 467
________________ (४४३ ) सुनानादुशमनशुं परनारी साधें, तल में बात जेडांते भाता जे हेनशुंभाश्णन्नतां वात नङरियों शर्तें ॥ सुनापारान्न रमणी घरनो सोनी, विश्वासेंनपि रहिश्जेंलाभाता पिताशुरैविए। जिन्नने, गुन्नी वातनहिनें ॥सुगाशाजन्नएयाशुं गामन नजेिं, आडतणेनविच शीग्जेंला हाथी घोडागाडी नतां, दुर्ननथीदूर जसिजें॥ासुनागारम तउरतांरीशनड रिमें, लयभारण नवि नर्धभेलाजेनएावात उरे नि हांछानी, तिहां बीला नविरहिष्जें ॥ सुना हुंअशविएा बातनङरियों छाषिएा नविन भिजेंन्धन विद्यानो मह परिहरिजें, नमतांसा येंनभिनें ॥सुगाला सूरजन्नेगी रान्न पंडित, हांसि डी नवि हसिनें हाथी वाघ सर्प नर वढतां हेजीने दूरे जसि ॥ सुनाना चा हांसिनरीजें, डेउरी नवि लभिभेला परो नम्रीखें घरवेशीने,लु गटडे नवि रभिग्नं॥सुनापशालएतां गएतां नासस तलतें, सजन चातनऽरिग्न्का परहस्तं परहेश दुडाने, आपनामन घरियास ॥शानामुं भांडे आाणस छंडी, हेबाहार न थर्ध में उष्ट लयाहिङ थाना वरन्तु, हेशावर न रहीजें ॥ सुना आधनवंतोनवेश भसिन | ता, पणशुं पण घसि घोपेलानापिङ घर नई शिर मुंडावे, पाणिभांभुजन्मेरे॥सुगावच्या नावा घनए। सुंदर न उरे, जेडी तरणा तोडेकाल में चित्राभए नागो सुग्ने, तेने सक्षभी छोडे।ा सुनाया भाता परो शिश नभावी, जापनेउरीजें समाभोळा हेच शुश्ने विधिग्नें वांधी, उरे संसारनां प्रभो॥सुना१९॥ने हाथे माथु नवि जशियों, अननविजोत रिभेला पीलांउंडे हाथ न छीनें, सामे पूरे नवि तरिखें ॥सुनाते सतभाडु दूरें तलों, भएरागस नस नवि पीने का उसवंती सतीने शि जाभएा, हुवे नर लेगी हीनें ॥ सुना१॥ ससरो सासु ने नेहाएगी. नए ही विनय भ भूडोला शाए|पएो शेरी संधरतां, धतुरा यास मधूमे सुगावजानीय साहेसी संग नडीनें, परमंहिर नवि लभिजेंन्शरात्रिप डेघेरजार ननर्धों, सहुने न्ग्भाडी नभिनें ॥ सुनारणाघोजा भाला Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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