Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 455
________________ (४७१ ) रात्रिलोन्ग्नमां शेष घएगा छे, श्यो उहीयें विस्तार ॥ डेवली डेहतांपार नपावे, पूरव डोडी महाररे ॥ माना११॥ रातें नित्य श्रोविहार करीने, शु ल परिणाम घरीनें ॥ भासें भासें पास जभानो, साल जेएो विधे जीने रेप्राणा१शा भुनिवसतानी नेह शिजाभएा, ने पालेनरनारी ॥ सुर नरसुजविससीनें होवे, भोक्ष तएगा अधिकारी रे ॥ माना१॥ ऐति ॥ जथ भेजन अस्थिरनी सञ्ञाय ॥ ॥ राग मनाती ॥न्जनीयांनी भोलं शेलं, लय नगाशं हेती रेश घडी घडी घडीयालांवाने, तोही न लगे तेथी रे ॥ गाशानराराक्ष सीन्मेरडरे छे, ईसावे इतेती रे॥ ग्भावी जवघें पीशंडे नहीं, सजपतिने से तीरेाणाशा भाषें जेठो भोन उरे छे, जांतें न्येये जेती रेशान भरो लभ रोनाएगी सेशे, गोरागोलासेंती रेशन्येगा आनिनशन्नने शरन्नखो, मेरासोडीन नेथीरे ॥ पुनियामां दूने हीसे नहीं, खाजरत्तरशोते थीरे शान्तेनानाहंत पड्याने डीसी थयो, अन सयुं नहीं डेधीरे गाडीय रत्न उद्देश्नापें सभन्ने, उहीयें वातो तीरे ॥ गाया। रार्धति॥ ॥ जथ निहावार साय ॥ ॥ निंहा भन्ने डोर्धनी पारडीरे, निंहानां जोल्यांमहापापरे ॥ चथर विरोध वाधे घणोरे, निहाङरनां न गएंगे भाय जाप रेशनिंगशा दूर जयंती अंरेजी तुलें रे, पगमां जलती हे जो सहु ङोयरे ॥ परनाम सभां घोयां तूणडांरे, उही उभवीन्सां होयरे ॥निंगशास्त्राप संलासो सहुप्रो आपणोरे, निंहानी भूडी पडी टेवरे ॥ थोडे घएो अवशुड़ों सहुलक्यारे, मेहनां नसीयां युग्ने डेहेनां नेवरे ॥ निंगा आनिंहा उरेतेथाये नारङ्गीरे, तपनपडीपुंसहुन्नयरे । निहारो तो करन्ने जापशी रे, नेम छुटम्जारो थायशानिंगानाथुए ग्रहले सहुडी नगोरे, नेहमांहेजो विधाररेकृष्णपरें सुज पाभशोरे, समय सुंदर सुजार रेशनिंगपा Jai Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.omd

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