Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ४३५ ) नमांहेरे, नेड़ धर्ध छती ॥ीणा सती यर्धने शीयल राज्य उत्पनाड़ी घी नहीं। नाम तेहनां नगतन्नएो, विश्वमांडीणी रही। विविध स्लें डित लूषएा, रूप सुंदरि डिन्नरी ॥ जेड शीयस विए। शोले नहीं, ते सत्य गाने सुंदरी ॥ना पास ॥शीयस मनावेंरे, सह सेवाङरेशानव वाडें रे, नेह निर्भस घरे॥णिणाघरे निर्मल शीयल बीन्स, तासङीर्त्तिञ सहसे। भनड़ामना सवि सिध्धि पामे, अष्टलय दूरें टले ॥ धन्यधन्य तेन्नगो घरा, नेशीयस पोषं आहरे ॥ आनंहना ते जोद्य पामे, पीह य महानस विस्तरे॥१॥ा रार्धतिय
॥ अथ घोजीडानी समाय ॥
॥ धोजीडा तुं धोने भननुं धोतीयुंरे, राजे राजतो भेष सगार रेश जेएोरे भेसें न्ग मेसो उश्योरे, विएाघोयुंनराजे सगार रेघोगा शान्निशासन सरोवर सोहाभरे, समडित नएसी रेडी पास रेशा ना हिउधार जारएणांरे, भांही नव तत्त्व उभस विशासरे शाधोनाशातिहांडीसे मुनिवर हंसला रे, पीये छे तपनपनीर रे । शम हमजाहेंनेशिलरे, तिड़ां जाते आप धीर रे ।। घोगाथा तपचने तपतऽङ्गेद्वरीरे, न्नसवने नव तत्त्व वाडरे ॥छांटा बीडाडे पाप जढारनारे, सेभ जीन्स होशेततास रे॥घोगाना आसोयए। सानूडी सूघीउरेरे, रजेजा चे भायाशेवासरे । निश्चें पवित्रपए राजने रे, पछें खापएगीनीभी संलालरेगा घोणापारजे भूम्तो भनभोऽसुरे, यस मेसीने संतरे समय सुंदरनी शीजडी रे, सुजडी अमृतवेसरे॥ धोना । र्धतिय
॥ जयत्नरतयत्रीनी सजाय ॥
।। मनहीमें वैरागी नरतन्छ, मनहीमें वैरागी । सहस जत्रीशभु कुटजंघराज्य, सेवा उरे पडलागी ॥ श्रोश सहस जंतेषीरी लडे, तो हिनहुवा अनुरागी ॥लगाशा साज पोराशी तुरंगमन्नने, छन्नुऐड
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