Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 462
________________ - गुरागावतां राहुंगासमस्तिथायेशुध्यराहुंगाशाषाधीवांशनीमा शाहुंगाथयोउंचनपुर रायशाहुंगाजापशुसंग्रामभांडीजोराइंग साघवीषीमोसभनयशाहुंगाजारपल अजीजी हुंगाप्रतिष्णो धपाभ्योनरेशरााहुंगाणत्तम संन्भमाध्स्योउंगाटेचतापोवेशरे गहुंगाना जपाय भुगतेंगयाहुंगाउऋषिशयरेहुंगास्या भयसुंर उहे साघुनाडुंगा प्रणभ्यां पातउन्नयाहुंगा पा एति ॥ अथ भनोरभासतीनी सजाय ॥ ॥ मोहनगारी भनोरमा,शेडसुदर्शन नारीरोगशीलप्रत्नावें शासनसूरी,थर्मन्ससान्निध्यारीशाभोगाधिवाहननृपनीमि या,भलयाधीमेप्रसंगोप्यो थपापति उद्देशूपीरोपएपंड। भोगाशातेनि सुपीने मनोरमा,उरेशणस्सण घरीध्यानापन तीशीलने निकुंतोषधोशासनभामाभोगासाक्षी सिंहान सनथ,शासनची हुन्नूरशासंग्भग्रहीथयांउचली,पती शेयस नूररोराभोगानाज्ञानविभलशुएशीलथी,शासनशोलपढावेरे सुरनरसपितसडिर, शिवसुंधरीते पापेशाभोगापा राति ॥ अक्रोधनी सन्याय ॥ ॥उडुपांतछेकोधनां,ज्ञानीमजोतारीशतपोरसन्न पीयें, हलाहलतोलगायाकोक्रोड पूरवत,संनभइसन्नयाप क्रोधसहित तपने उरे तेतोपेजेनथायराऊयाशासाघुघणोतपी योहतो, घरतोभन वैरागाशिष्यनाकोपथीथयो,यंडोशीयोना गाउनाउ जागणडे ने घरथठी ते पहेसुंघरजानसनोब्लेश न्ननविभषे,तोपासेंनुपरन्नखाऊगायाकोधतएी गतिभेची, उहे उचलनाशी पहाएरेने हेतनी,नसबन्ने भन्नएीराज्याप राणध्यरतन उहेकोधने, अढनेगलेसाही आया उन्ने निरभ| - Jal Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrartirg

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