Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१००)
॥जय द्वितीयप प्रनुतेरो पजन्योआणे निशेषानुगाटेगापांयभरना डिपाटपटंबर,पेयजएयोउसजीगमलगाताभिस्त भुइर अने यडस,हारहिये सिरदीप्रत्लुगाशासभडित निर्मलहोत सऽस ननजिश निनलओएमलुगासमवसरए पियस्वामी विशनि त साहिमतीनदुनीरामलुगाचासमयसुंघरहे अप्रनुलेटे, सखनन्मताहिकप्रलुगापा तिा
॥जयतृतीयप। राजाभिषे हे पीपणारी,श्रीरउमगाटेगा साधनिरंतर सामनंतर, संवरलूपएघारी श्रीगायनायजरोणरन निनडे,सभगुरभेसमधारीपमहिलभसाएभरगमरवन,न्नेरि पुभित्रसुजारी श्रीनाशासभ्यज्ञान प्रघाने पावन पणितप पापापनाशुध्यन्यसपसभरनों पारिहे हारीगायेगी गान्नेरिन्नुपरलूपर विनये,नित्यमनिढोडभारीपलाया अध्यनर्शन पाणं वाहिनीपतिहारीश्रीगाय प
॥ अथ चतुर्थ पट॥ गोरी पिनमवारा डिमोडीगोरीगाटेगातोरणाय यखेरथोरी,प्रीतपषम्भे तोरीगणोरीगशामष्टलवाडीप्रीतहमा रीनवभेलपज्युंजरी गोरीगाशातुभपियानाहइपीऽनन्नणी होओएगति भेरीगोगाठालानयंपियारानूपापिनये, पढप र उरन्नेरी गोरी पतिण
॥ जयप्रथम प पराशमशान धर्भनहिंडीना,पोनर हिपाशानेनगा
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