Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(१०) एचाभाराघ्यो ग्निवरे,शुश्डे पाणो पायाध्या धर्मध्यध शेरेजेटीनीनवषजतायाएषगगापा
॥ अथ पंयम पठं ॥ ॥मानापैथालोसहियां सिहायष शिरियासुए जनीगिरिनोभहिभा,साहिरिनंहजेभलांजीनस्ताहिजन रपतिने भागण,शसिौसाजीशाभारगाणागिरिचरी यशवमनंतो,साघुअनंता सिद्धान्मभश्एनांदुजोजने, मभूट्यअक्षयगुएराषीधारेपानगाशाएगिरिसन्मुजपण सालस्तां,मातमशुध्यस्वला-गोडिलवनांपातडीघामेज पखडभेन्नाभागाठाशातुं तीरथश्रीशेने,न्नेता लागेभी छातीनलुचनमें रागिरितोजीलुओनधीइंशा भागाचा निरंन्नथुनेहधरीने डोडे सोपंगरस्यांगजलुतमाहिरिने पर निरनी, प्रेमसुधारसपीस्यांशाभागापापुष्पसुगंधी पयत्री हार सुगंधीयुंथी।पहेराची प्रलुपहिये, शिवभारशनीस्थी। मागादा गहिरस्परें ग्निवरगुएगातां,यात्रानयागुंजीयोभनण मतीलभतीनियलभता,लवसायस्थीतरीयेशाजागाणापूर्वनवा घुचारप्रथभनिन, रायएएजेभायापते तीरथशुललाइरसी, रिये निर्भसयामागाटालानाध्यमे गिरियोसहियें,उहे। भडेचणनाएीश्रीग्निपंहसघहितवत्सण,प्रेमघरोपित्तमाएर,
આ પાન ॥ अथ प्रथम पटं ॥ ॥राशलावतासनस्वारथ भित्रओनाहीतुभारोप साहेजनाभसंनारिय,तातें होत निसताशासनगाशार्थतनहुँसभा
नहि,याहतपन धानजहीसूरनमाथभे,तजही जंधायास पशाताता शिक्षाओयला,तैसा संसारााग्निरंग धन्यते पुषहे, लिन
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