Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 449
________________ १२५ अपानगाणाशेऽपिहार सोहाभयो, माटीवर स्वाभीसोपून्ने लिपिन्ना,पूरण सुजाभी नगरवापशाहरिगीतछंधान मुहितारए,विधनवारए,तरएतारणगुण्डरीन्निरागप डिभानभरपूग्न,सूत्रसांजेमारी शुयियानवाघे,शुध्यसान ||घे,समावेश सहुहरीपश्रीधीपयंत पसायलांजी, टेवय हितधरी - ॥१५॥ ॥ जथलीडलंन्न स्तवन ॥ ॥चावारे वाभानंहनस्वाभी, लीडलंग्नशानीडलंग्नरेत्या भी भहारा, नेहवाल,पापजंडएगापापणापासंगीरथीसा रहनी,सुडयनशासुमनासुकरण संरयूरग,जलग्न शापुरजगाशासान्निध्यारीसाहेजमेरो,मरिगंग्नशामरिणा न्यायसागर उहे हाथन्नेडी,उई.नगागागा तिा ॥ ॥ अथ श्रीऋषलस्तवन ॥ ॥रागजलाती ऋषत्नध्वभानुप्यारारे,ऋषलल भानुप्या। शशानानीलूप भरटेचीओनंहन,लपिडलव हितसराशाषनगाण प्रथमतीर्थरप्रयमग्नेिसर, प्रथम यतिव्रतधाशशाउसरीया भान प्याराऋषलगाशाभोतीलालउहेअपननसें अपनापनमस्घात्या २॥१॥3॥ ॥रागमभानो शीण हमारी,तोसभन्नयहुँप्याशा | भानोगाभेटेआवाजयोराशीलवसायरश्रितो, मनजान्न हिधारीशभानोगाशापाये धनयौवन भतवाषी,रंगरंगीपीनारीरे एभानोगाचारविसहोस भय्योहे, हारवेशोन्युंन्नुभारीशामा नोगाशाघनयाउरत्तीरथव्रतघर, उत्प्रत्लुलसेंयारीशरारूप हिनाथ निरंग्न,हेलातन हितारीशभानोगामा रातिए maran - Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrarig

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