Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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( ४२८ )
एगनग अभर उहायरे ॥ सेगाशारावासरिजारे रान्वी, नागा थाल्या चिएा घाणरे । घ्श माथां रखा रडवड्यां, पांच हीग्जे शिरडागरे, हेवणयासवि लागरे, न रह्यो माननो छागरे, हरि हायें हरिनागरे, लेने लायोनारागरे ॥सेगाआडे याख्या अर्ध थालशे, जेता पासएराहार रेशभारण वहेतोरे नित्य प्रत्यें, नेता सग्न हुन्नर रे, देश विदेशसघार रे, तेनर भेएगें संसार रे, न्नतांनभ हरजाररे, न न्नुवेवार हुबार रेशसे
नारायण पुरी द्वारिगं, जलती भेली निराशरे शारीता रएामांते ब्जेङसा, नाहा हेव जाडाशरे, डिहांतर छाया ग्नावासरे, न्सन्सडरी गयो सासरे, जसल-ह सरोवर पासरे, सुट्टी पांडव शिववासरे शासेगा याशिल गाळने जोसता, ऊरता हुम्भ हेरान रे ॥ पोढ्या अग्निमां ग्जेङसा, डायाराज सभानरे, प्बह्म हत्तनरङ प्रयाएारे, भेऋष्पिष्ञथि र निहानरे, नेतुं पीपल पानरे, म घरो ब्लू शुभानरे ॥ सेगाशावालेस रविनाभेङघडी, नवि सोहातुं लगाररे ॥ते विना जनभारो वही गयो । नहीं अगल सभाधार रे, नहीं डोर्घ श्रेर्धनो संसार रे, स्वारथीयो परिचाररे, भाता भरैहेवी सार रे, पोहोतां भोक्ष भोश्राररे ॥ सेाणामातपिता सुत जांघवा, अघिमेराग विधार रेशानारी जसारीरे वित्तभांचं छे विषय गभामरे, न्नुवो सूरिडांताने नारदे, विज हेती लरताररे, नृपति न धर्म आधार रे, सन्नन नेहु निचार रे । सेनायाहसी हसी हेतारेतासीयो, शय्या कुसुमनी साररे ॥ते नर अंतें भाटी थया, सोन्थएो घरजा ररे, घडता पात्र कुंभार रे, जेहुपुंन्नएणीग्नसाररे, छोड्यो विषय विज ररे, धन्य तेहनोजवताररे ॥ सेायथावयासुत शिववस्था, चषीने साथी कुमार रेशधिङ् घिड् विषयारे कवने, सर्व वैराग्य रसासरे, मेहेन सी मोहु मंनल रे, घर रमेडेक्स जाल रे, धन्य ऊरउंडू लूपास रे शासेना आफ्ना श्री शुलविन्य सुगुर बही, धर्मरथए। घरो छेङरेशवीरपथन रस शेलडी, वाजे पतुर विवेङरे, नगभेते नर लेङरे, घरता धर्मनीटे उरे, लवन्ग्स तरिया जनेऽरे । सेनाशा ॥र्धतिया
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