Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 443
________________ - ( १८ । |भांरेनाटऊ नाथीमो,हवे मुरपारणताराासिपात्रगरतन भुग जालोतातल,निभानावे संतापााधानमंतारे प्रत्लुलसुरडिसी, आपो पध्वीरेमापासिध्यागाशचिराधगुडेरे मेरउंपाविमो सुरभोड्युरेभानामष्टउर्भनरे ब्ण्डोलतिभोटीधुंबरमीशन सिध्यानाशाशासननायशिवसुजय, विशलाईजेरतन्न गसिध्यारथनोरेवंशीपाविमो,प्रनुल तुझे धन्य धन्यासिध्या एच्यावायडशेजरीतिविग्यगुरपाभीतासपसायाधर्भनणारे नियोगीशना, विनय पिल्यगुरागाथासिध्यानापति - ॥जथलीडलंग्नाग्निस्तवन । · ॥माजडीयेंरे भेभान शचुंग्यटीहोगामेदेशीपाभीपन लुलनापाय,भाएनसोपुंशासानषीताहारांचथराउनेशेपुराण नभनभनारेशउरतां,वाहाला तोभाराध्याजन्यवाशा शुश्तयाणपशेलागो,पाधीनहींतुन सेवागाभागुनसोपुशासन पशामेमांगीन ज्थीरनोवेरोनन्नएयो,पाहावा तोअथ थीर समनोख्यावाविवेऽतपी तोवातनन्नएी,विषमभृतउरीघो प्याराभानाशासभडितनोलवलेशनसभन्यो,वाहासातो मिथ्या भतभा जूनोपापतए पंयें परवरियो, विषयें उरीने विणतोशामा, पारोड पूवषे पुएयसंयोगें,चाहाषाहुँतोमान्डुसें अवतरियो ॥शालीउलंन्नमुरसाहेनभलीयो, ताररुपोतेंतरियोगभागा। टक्षाविसमें विगतनन्नगी चाहालातेणें तुन्थीरयोकुंभलगोरे राणघ्यरतनउहे मान्यीताहारी,हवेधमणि चषणोगाभागापा ॥अथ शत्रुग्यस्तवन ॥ ॥शचुनगढनावासीर मुन्शेभानन्लेशासेपनीसुणीचा तरेभनभांभागनेशप्रलुभाशीहडे तुभद्देपर, भार भुनेणोपनो हु Jal Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibra borg

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