Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 444
________________ ( ४३० ) रजग्नपाशाशासाहेलीयानी सेवारे लवदुःज लांगसेरे ॥ने आएगी श्नेऽश्रनष्ञभारीरे हिसभां धारन्तेरे, थोरासी सजरेशरे, दुरगति वारमेरेशा मलु भुने दुरगति पडतो राज, हरिशन बहेतुरे राजा सागार होलत सवार्धरे सोरड हेशनीरे, जसिहारी हुन्नबीरे, मलुताद्वाराचेश नीरेशमिलु भाहारा रेडुं तमारं रूप, न्येतां भोझारे सुरनरलूपासा आतीरथ नहीं मेरे शत्रुंन्न सारजुरे, प्रवधन पेजीनेरे, मीघुताहारै पारजुंरे ऋषलने नेर्धनेर्घ हुरजेने हु, त्रिलुवन सीसापाभेनेहा सामानासहार्ध कुंभारे प्रलुताहारी सेवनारे, लावलांगोनेभांडवनारे ॥ प्रलु महारा पूरो भनना डझेड, भेभ म्हेपीयु रतनम्रब्लेड “સાબાપા ॥ अथ श्री पार्श्वग्निस्तवन ॥ ॥ जाजडीयें खमे जान शत्रुंनय ही हो रे ।। ग्ने देशी।तारी भूरतिनुं नहीं भूसरे, लागे भुने प्यारी शाताहारी आजड़ीयें मनमोह्युंरे, लजं सिहारीरे ॥ जांएगी |भालुवननुं तत्त्व सहीने, वाहाला माहाराता तुंनी पायोरेन्सघसो निराजीने न्नेतां, ताहारी लेंडेंमेघनमाज्योरे तानाशात्रिभुवन तिसङ सभोवड ताहारी, वाहाला भाहारा सुरतसुंदर ही सेरेमेडी उंदर्प समरूप निहाली, सुरनरनां मन ही सेरेगाताना शान्योति सरूपी लुंनिएो निरज्यो, वाणातेने नगभे जीने ज्यांहींरेग निहांलेये तिहां पूरा सघसे, हेजे तुन्नेत्यांहीं रे गाताना आतुन्भुज न्नेवानी रढ सागी, वाणातेने नगमे घरनो धंधोरे ॥ श्रासनंन्नससहुअसणां भेसी, वाणानुनशुंभांडे प्रतिषेधोशाताणानालवसायरमां हे लूसा लभतां वाणानुपासनो पाभ्यो आरोरे ॥ जीयरतनउड़े जाहें साड़ी, सेवा पार बीतारोरे ॥ताना त ॥ जथडेसरीयाळनुं स्तवन ॥ ।। तभे अन्नएया सभेलएशीतारे, भेगरजीना रागभांतुमें Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibraryo.

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