Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(४०० ) उरणांहोयसोरसे, मेहु अवसरनहीनेनाप्राणिडानाशार्श नज्ञान परएपित्त घरसे,न्युंपावे सुजयेन। प्राण्डिानारामा तभान डियोड्छु चाई,सुनसरडावेन पाण्डिागाचा
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. ॥ अथ प्रथमपदं ॥ राशसोरहानामिनंहनशंपशीषवनालिननशंगटेबाप तनेभयोर थडची, हलस्तान्युपधपुर भोर भटहार वरजत,ना ससरपरसुरालगीगाहान्नयोतनघनन्नयोन्जन,पाएनयोनड्यु एडभेरेलाडित पत्नुडी रहोब्युरीयुगालगीनाशाऔर वमने |सेवे,उछुनपायोऽयुज्ञानछोरे गांडडोडुनिउरत उजिनन्याला गीगाउाभाततातनेल्लातलाभिनी,संगअपने थुनरमेण पधान होशे, उहतलूघरयुषणीगाच्या इति।
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॥अथ द्वितीय पहं।। __रेलवोनसयानपीना, तुंपुष्टापडेशलीनागरुपाटेड एतुंथैनन हन्डन्नु विपाराजाभलया जति हीना रुपानेरेशु रामेज्ञानाधिदर्शन, भूरत हीतेंप्रवीनारारियइरस रसगंध वरणभे,छिनछुपछि नछीनारेगाशास्वपर पिड पियार चिन नाशा, घरघरमणशीनाम्गतराम पलुसमरसयांने,मा लहुंउछुनउभीना रेलयका पति।
॥अथनृतीयप । । नहि मेसोग्नमवारंवार, नहि मेसोगाटेगासंतसंगति जित्तमनरत्नवापावभावाशानहिंगाायिरनपहचंतसि हणेतर,उरि ग्निपूरनसाशाश्रवने सुनीणपटेशलहियें, रसना पढतनवाशानहिंगशामस्त: ग्नि पडेनभयेउं चक्षुत्रनुवंटन
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