Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 416
________________ । । ( 3८२ ) हभपायघारतनगडितउंचन घूघरवा,ररामराजारामारी पशाहलतलसतभुताइस भाषा,पीतवसन पगाभानशुसे भानशिजरतें गंगालाव उभागाउपधन विशवाटेलाप शानिहारो,तुं पिल्लुवन शिरेंगतीनलुपन नायडतेरे गए। जीयादि।भागागाभीवर्यभान निनंही भूरत पिनहेज्यांना सगारजयप्रनु वान पिसोडित,सरयेशन सशाभागापा ॥जय सप्तमपटं ॥ सभन सभनल्याज्ञान विचार,सभनसभनयटेडया लतें पायुंछता पथुिखज्जहन्नशाने पसभेसजन्नुशल ताणीतरगयेलवपारसभनगाशाज्ञानउजान लरलरमा रिंभमत वालेयाशा पूर्याउहे नाथनिरंग्नमापजेसि रघरासभनाशा पति। । ॥ जय जप ॥ पभोयसें नारोशडीनध्यात,भोयसेंगाटेगाताशेती तारो नित्यतुभतारो, चिनतरपेईलीयोसंभालाभोगापायन उहाउंयनज्यो,भलिन उंयनरन्नलाभोगाशामक्रोधों वपटरह्यो नित्य, भाया भोऽनंग्नलाभोगाभोयपापीहंपप वनउरवी,जातीनपाला भोगाचा मल्सिनाथपत्नु भोड्न नीभूरत पथंड रक्षपाल एभोयगापण ॥ जय नवम प॥ एमोरनशुंरंगन्यारान्याश तुभशूरंगशरी हेमोगाटेड एतुंभनमोहन नाथभारामजतो प्रीततुभारी हेमोगालेणी होयडेशनाये, भोटी मुशारी हगणोरषज्छेसृष्णानहि - Jaleducationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrartig

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