Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 419
________________ me - (८५) निनस्परियाराधेिशापरनिमंघन पापसंयनलरतमानमा लारारापञ्तज्युलवूनसघिलहरी,उरभन्नसमतारार्थितना आप पिस्थिविषयपुर्नया सभापरिहाशापरभा निश्पाघिड निर्भया सुशुण संपघसाशाचेतनायजेपित्तनाशप निनपह,परभा पघाताराप्रशटे युलिनलन्तिन्नेरो भतिवितासणितशाचेतनगापाए ॥जयषष्ठ प॥ गलनभननालिननयरन,लनभननानिगाटेापतित पाया नदुःजलनन,सुजसुस्तरनालनापासुजसंपतिस्वर्णपति, यक्रजति उरनारोशमोगाविनेगलयदुःजाहराणुएगएघ रनाननगाशाग्निलने सोगयेशिवपुर,भेटिननमभरणाविरघ घ्याण पाण सम्बनितारणतरणालनगामा पतिए __॥ अथम सप्तमपदं॥ सभन सोय पियार,रेलयसभन सोपवियाटेगानस्ति पिनालगवंतदुर्सल, हुतनशन पुष्पसारेळयापाटि पासागरतीनु,पांच पपीशोभाशापर,तेरे तीन गोहेर थोडश परेलयगाशालांजसत्तरेसुनजढारे, पाय पंन्न भारावते रो पत्योभजडे, तलाउहाशारेलयगागाभकोघलोनभाया। इस्योनागनीनाशापासप्रनुडी विनालप्ति,यस्योोगउराशारे ॥ अथ मष्टम प॥ भनरेतुंड भायानस,भनरे तुंछोड भायागाटेगात्नभरण उजशायजेडेन्राडेरजाताभनगाजालजांधी शिवाशि परजयेडेनोआखायेत येतन जानते हैं घी/ घरीयालाभन पशामात तातरल्लातत्नाभिनीवरछी सेवालारानसंगनयले - - ॥ Jal Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary

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