Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 421
________________ ( ३७७) नंह, शोलित शरह घाउहे निनयह पित्तज्ञानं वधाने हेवभागान ॥ अथ द्वितीय पहं ॥ ।।हेरी मार्च ऋषलगी मेरे मन लगति जसीरी ॥ भार्घणाटेशा प्रथम नवनपति प्रथम नरेशर, प्रथम योगीसर प्रथम नतिरी भा ऋषलनाशा प्रथम लिक्षानर प्रथम तीर्थडेर, प्रथम डेवलज्ञानी लुनंग पतिरी ॥ भार्धऋषलणाशा श्री विमलायस साहेज भंडा, म एभित समय सुंदर बीएससीरी ॥ भार्य ऋषलगा। र्धित॥ ॥ ॥ जथतृतीयपहं ॥ मेरे नैनां तेरे नैन हेजी सुज पाये हो । भाई मेरेगा रेझानेतो प्रनुशांतिनाथ सज संघ शांति डरो, रोग सोग दूरें हुरो, शांतिपर तायो है ॥ भार्ध मेरेणाशा या नगड़े हेच नेते, जनता जनेतीसेतें, मन वय अया उरडें वीतराग घ्यायो है। भाई भेरेणाशानजमें थरन लेट्या, पाप पंऊ दूर भेट्या, पुएयडी पूरन पार्छ, सजल हिवस गायो हे પંમાઈશામાં ॥ अथ यतुर्थ पधावृद्धावस्थाविषयः ॥ एग्जायोरे जुढापोवथरी, सुधी जुहि विसरानी ॥ भार्ध नायो रेशाननडी शक्ति डीटी, पास अर्ध अटपटी, हेह सटी, लूजघटी, नैनउरे पाएगी ॥ हे मार्धनाशाहांतनडी पंक्ति त्रूटी, हाडनजी संध्या छूटी, डाया मेरी लूटी, डिंधुन्नतांन पिछाएगी । हे माणा शाजास नेव रेश्यो, रोगने शरीर घेरयो, पुत्र लीन जावे तेडी, मोरनडीहनिउड़ाहे मार्च आयोगाआलूघर समन हुवे, प्रलुडुं लभेगेडजे, जेह गति होयणी तेरी, तज उहातुं डरेगी। हे भाई आयोगामा Ja Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary org

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