Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(3८९) त्नी स्वाभिनाभसंलापभनगाडतिरा
॥जथनवभ पहं॥ ओएनेभिभाशाणभेएनेभिभाशाटेगाछप्पन छोडि मध्व भीषणाये सजन्नवाशिरशावात सनसनियनसुंउले टीस तसनताराराणगापाहायमें भिंडोणगंए,अयानलसाराए तोरणशुरथडे प्रत्लुन्नयपढेगरनाराएगाशाध्यानघरपमा |सनेल, उरमध्यिासजन्नशाछिन वसुभळते शनिभती लरथारााएगागा ति।
॥ जय शमप। पानगशील हेपरपान नगर्भशीपहनाटेगाचातुर यतुर |विचार हेजोलपओणनभानालगायशीलें सीतामाग्निलंता तलछमन जाएगाशीलतल मलया पिशुपी मापऐजनिभाना नगभंगाशाशीलशेठ सुदर्शन पाल्यो,सुएतसभ्यञ्चज्ञानासूमि डोसिंघासएडीनो, आपलयोक्षभावानानणगानाशीलनेनर पाखेलिन, यवतमभरविभानाहरणीति मसलचिननाशी सुजानिधानानगभंगा तिण
..॥ जयप्रथम प॥ पारागनैनैवंतीय मानतोहमारेला चीरप्रलुभानेभा मानतोहमारेगाटेगाथनाजडीवार,पित्तशुज्रेवियाशान तधिरहिये हरजलराये।भाभानगपाजान मेरी माशा ती,जपीभेरे रंगरपाविशीभातभऽसी, प्रलुपात्रपामेहेयभा
मानगाशाघन्यतिनमान मेरो,गयोसाडेरोगसुस्तष कुततेरो,लगवान खिलानेभामानासिध्यार्थशयन
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