Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(3८९) भनही नहीं पाशेयौनसोंगनिननसुहावेभोर शरस रवि साहि बडेखोनसोंगभगाउगारहे भघाय पायसुनसंपत्तिओनिसें निम्न लवनसौं सहेजलायसी संगति रोप्लेंभापागमनसोंगहन
॥ अथ प्रथम पटं ॥ गन्याश्रीगन्नपीथांडीप्रीत नलुल,न्नपीयांशीप्रीतम पटेगानेतन्योनवलकोपसमें भेटेजी विपरीतानगीगार घषीमो पशुभनसेंन्नूहो भन्ननीनवनीतपरयेनेभनवष| सोनारी,शेजावेगांव चित्तानणी थांडीगाशा रायता
॥ अथ द्वितीय पर॥ हारे भेरे मित्त नियित होतुं सोचेगाहरेगाटेार्टीज यसराय परिरभोहभगन भतहोवेशाहारेगावाटीयौर तातहे निशदिन,लोषपनामतहोवेशातलजसमापन्नगलेला धिर्भरतभतजोवेहारेगाशानिम्स निगोह मोक्षयसवेरा इपिषमछान्नेवेशाधानतगरजगइरपुरारे,तुं सावधान ज्युन होवेशाहारे भेरेगा। पतिा
॥ अथ तृतीयप ॥ जैसी निनजानी भेरे लावंहागनेसीगाटेगानणतपति उ भुजतें निसीहे,प्रगट हे नगसारंजाजैसीपालव्यन| शेषररोजंधेरो,तारुंउरत निवारंहराजेएजैसीगाशालवसुंडया उसरऐ जायोताहिउरत प्रतिपारंगजैसीगावाटेवनधी सुनिउरन्नुशन्नेरीताईंशीशनभंजेगसीना पति
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