Book Title: Jain Kavyaprakash Part 01
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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(३७८७
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लडे एनडौं, उहत नाचत ज्ञान रागाचा राईदिए ।
॥ जय प्रथमपटं ॥ ॥राणजिनासाघुचपरासीभपर सभोसरनालगतईत त्यस्तगावतीसंगितरीत,भावती देवनागरीसीभंघरुपारेड गागडही गागडीघूभधीनातागडहीतागडही महीनातननननन थेतुरंगासन भुन जाव्यारी सी घरगशापभपभशभृहंगचा
हंजणपरंगरानेभुजजन्नवतरंगयिंगारंगो निधानरीयासी भघर गाजरतनाट विषपत्तीस प्रमुछे मार्शनभेशीशाणुनावि | सणसेतमोहन, भुजगेर्णयानी एसीभंघरनाचाहतभासदेवः | बलनभननभतेरीसेवातुभहिवतबहेबालवसभुरणताररीस
॥ अथ द्वितीयप। ॥न भुज ज्योत्री निनतेशेलवे भुजडेज्योश्रीनिनगाटे एरोभरोभशीतसशुनप्रशट्यो,ताप भिट्योसजमेरोगनवेगासन विननघुनननैनसबरंननननदृष्टभनेरोजघरपोलता सणसुंरीपऽन्योतिणनेरोलगाशारपिशशी भाएितेभन घिडविराने,तेन प्रतापपणेरो मस्तिहासमरस उरत हेलपल वतुभपाययेशेगलगा। रातिए
॥ जयतृतीयप ॥ ॥रागजटागौतभनाभरपोपरमातें रखीयरंगरो निरप तेंगशौगाशालोननमिष्टाभिषेजहुलाने,पुत्रभिलेसुचिनीतसुन्नत गौनाशापापे रतिनगविण्यातें, सभयमुनगौतमगुएराणा तेगौतमगाडा तिरा
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