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जैनेत्तर विद्वानों की सम्मतिए. (६९) ( ४ ) सारांश यह हैं कि इन सब प्रमाणों से जैनधर्मका उल्लेख हिन्दुओं के पूज्य वेदमें भी मिलता है।
(५) इस प्रकार वेदोंमें जैनधर्म का अस्तित्व सिद्ध करनेवाले बहुतसे मन्त्र हैं । वेदके सिवाय अन्य प्रन्थों में भी जैनधर्म के प्रति सहानूभूति प्रकट करनेवाले उल्लेख पाये जाते हैं। स्वामीजीने इस लेखमें वेद, और शिवपुराणादिके कई स्थानोंके मूल लोक देकर उसपर व्याख्या भी की है।
पछिसे जब ब्राह्मण लोगोंने यज्ञ आदिमें बलिदान कर " मा हिंसात सर्वभूतानि" वाले वेद वाक्यपर हरताल फेरदी उस समय जैनियोंने उन हिंसामय यज्ञ योगादिका उच्छेद करना प्रारंभ कियाथा बस तभीसे ब्राह्मणों के चित्तमें जैनोंके प्रतिद्वेष बढ़ने लगा, परन्तु फिर भी भागवतादि महापुराणों में भगवान रिषभदेवके विषयमें गौरवयुक्त उल्लेख मिल रहा है। .. (६) अम्बुजाक्ष सरकार एम. ए. बी. एल. लिखीत " जैनदर्शन जैन धर्म" जैन हितैषी भाग १२ अंक ६-१० में छपा है उसमें के कुछ वाक्य ।
(१) यह अच्छी तरह प्रमाणीत हो चुका है कि जैन धर्म बौद्ध धर्मकी शाखा नहिं है । महावीर स्वामी जैन धर्मके स्थापक नहीं है । उन्होने केवल प्राचीन धर्मका प्रचार किया है। - (२) जैनदर्शनमें जीव तत्वकी जैसी विस्तृत मालोचना है वैसी और किसी भी दर्शनमें नहिं है।