Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 1014
________________ वर्तमान हमारे गुरुदेवों का विहारक्षेत्र ( १७३ ) गए हैं और जिनालय - शिवालय के रूप में परितीत हो गए हैं। क्या यह कम सोचनिय विषय है ९ समझमें नहीं आता है कि आज इसाई, मुसलमान, और आर्य समाजिष्ट लोगोंने देशभर में शुद्धि संगठन की धूम मचा रक्खी है, जैन समाज को खूब हड़प रहे हैं फिर भी हमारे आचार्यदेव कानों में तेल डाले हुए एक प्रान्तमें क्यों विराजमान हो रहते हैं। नए जैन बनाना तो दूर रहा पर वर्तमान जैन है उनका रक्षण करना भी उनसे नहीं बनता है, कहा है कि " अतिवृष्टि दुकाल और अनावृष्टि दुष्काल " यह युक्ति हमारी समाज के लिए ठीक चरितार्थ होती है, गुर्जर प्रान्त में तो हमारी साधु समाज का अतिवृष्टि दुष्काल है कि जहां श्रावश्यक्ता नहीं है, वहां तो दो २ सो चार २ सो साधु साध्वियों एक ही प्रान्त में रहकर आपस में द्वेष ईर्षा क्लेश कदाग्रह बढाकर के आपस में तथा गृहस्थ लोगों का द्रव्य खर्चा और उन की संगठन सक्ती का सत्यानास कर भिन्न २ वाडाबंधी कर अपने जीवन को क्लेशमय बना रहे हैं । तब दूसरी तरफ पूर्व बंगाल महाराष्ट्रीय दक्षिण मालवा मेवाड़ और मारवाड़दि प्रदेशों में अनावृष्टी दुष्काल हो रहा है कि वहां मुनियों के बिहार के अभाव जैन लोग अजैन बनते जा रहे हैं, जिन मंदिरों की आशातना हो रही है, वह साधुविहार का दुष्काल है कदापि कोई मुनि यात्रा निमित्त पूर्वोक्त क्षेत्रों में जाते हैं एकाद चातुर्मास किया भी करते हैं पर उनका प्रभाव कितना उनसे सुधारा कितना फिर भी तो उनको भागकर गुजरात में जाना पड़ता है. समझमें नहीं आता है कि

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