Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 1018
________________ साहित्य सेवा. (१७७) इत्यादि । फिर समझ में नहीं आता है कि हमारे शासन नायक सूरिश्वर और मुनिवर्ग अपना अमूल्य जीवन व्यर्थ गप्पों सप्पों में क्यों बिताते हैं, हम को तो आज भी पूर्ण विश्वास है कि हमारे जैन विद्वान अपना ' फिलासोफी ' ( तत्वज्ञान ) जनता को समझाने के लिए कम्मर कस मैदान में खडे हो जाय अर्थात् देशविदेश में परिभ्रमण करे तो पूर्वाचार्यों की भान्ति जैन धर्म को विश्वव्यापि बना सक्ते हैं, कारण कि अव्वल तो हमारे गुरुदेवों का त्याग वैराग्य निस्पृहता और परोपकार परायणता जनता को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है अर्थात् उन का असर बहुत जल्दी पडता है, दूसरा हमारा तत्वज्ञान इतना उच्च दर्जे का है कि उस के सामने संसार को शिर झुकाना ही पड़ता है। क्या हमारे गुरूदेव हमारे मनोर्थ और आशा को सफल बनावेंगे? हमारे गुरुदेवों की साहित्य सेवा हमारे पूर्वाचार्योंने अपनी तमाम उमर जैन साहित्य सेवा में पूर्ण करदी थी वे एक घणभर भी व्यर्थ नहीं गमाते थे ग्रंथ रचना और उन को अपने हाथों से लिखना उन के जीवन का ध्येय था, आज हमारी समाज में प्रायः न तो कोई नया ग्रंथ रचनेवाला है, और न कोई हाथों से लिखनेवाले हैं, इतना ही नहीं पर जो पूर्वाचार्य रचित सैकडो जैन ग्रंथ मंडार में पडे सड रहे हैं उन को प्रकाशित करानेवाले ही बहुत कम है। अन्य लोग अपने धर्मशाबों को

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