Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 1025
________________ (ta) जैन जाति महोदय प्रकरण छला. वीरभासन धागवाही चल रहा है परन्तु श्राप श्रीमानों का संगठन नहानेसे अाज समाजमे स्वच्छन्दचारियों की प्रबलता वडती जा रही है अगर निरकुंशता के कारण उन की संख्या बढती ही जायगा तो .मान जो सच्चे शासनप्रेमि शासनोद्धारक समाज हितचिंतक प्राचार्य. और मुनि पुङ्गव है उन की तरफ भी दुनियों का प्रभाव हो जायगा इस लश को आगे रक्ख दो शब्द लिखा गया है उस का अर्थ कुच्छ अन्य रूपमे न कर बेठे इस लिये यह खुलासा करने की जरूग्त पडी है कि मैंने जो कुच्छ मेरे दग्ध हृदयसे उद्गार निकाला है वह निंदा शिक्षा-उपालंभ रूप से नहीं पर एक विनंती या अर्ज के रूप में उन्हीं महात्माओं के लिये कि वह स्वच्छन्दचारि हो समाज को लाभ के वढले हानि पहँचा रहे है और तत्वदृष्टिसे देखा जाय तो वह अपनी श्रात्मा को भी नुकशान पहुँचा रहे है मैं एक साधारण गृहस्थ हुँ पूज्य मुनिवरों के विषय बोलने का मुझे तनक भी अधिकार नहीं है तथापि शासन की बुरी हालत सहन न होने से यह चेष्टां कि गई है और अपने विचार जनता के सन्मुख रखने की स्वतंत्रता प्राणिमात्र को है तदानुस्वार मेने भी यह प्रयत्न किया है इसपर भी किसी प्राणि को रंज पैदा हा हो तो मैं अन्तःकरणपूर्वक क्षमा की याचना करता हूँ और क्षमाशील महात्मा मुझे अवश्य क्षमाप्रधान करेंगे इस आशा से ही इस लेख को समाप्त करता हुँ ॐ शांन्ति । समाज शुभचिंतक "गुलकान्त" अमरेलीकर

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