Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 1017
________________ ( १७६) जेन आति महोदय प्रकरण छठा. अपने सिद्धान्त की रचना खास वैज्ञानिक ढंग पर की थी भाज उसी विज्ञान की आशा अभिलाषा सारा संसार कर रहा है पर उन को सुनावे कौन ? समझावे कौन ? इतना पुरुषार्थ करे कौन ? इतना अवकाश है किस को ? अगर किसी सूरिजी को नामांकित मुन कोई जिज्ञासु तत्वज्ञान के विषय में प्रश्न करे उन के उचर में जहां तक हमारे सूरिजी के वचनों को जीसाहिब, जीसाहिब, करते रहें वहां तक तो ठीक है अगर बिच में तर्क कर ली तो उस की कम बस्ती समझो उस के लिए नास्ती अधर्मी पापी और अनंत संसारी के इल्काब मिल जाते हैं। कहावत है कि "कमजोर को गुस्सा ज्यादा" पूज्य गुरूदेवों ! अव भाप अपनी पुरानी रूढी को बदलाओं अपने शिष्यों को चारित्र और और उपन्यासों के बदले वैज्ञानिक झान ( तत्वज्ञान) का अभ्यास कराभो, कारण वर्तमान इस के ग्राहक बहुत है इस के प्रचार से ही भापके धर्म का महत दुनिया समझ सकेगी, जिन जैनेतर समाजोने जैन तत्वज्ञान का अध्ययन किया है, वे भाज प्रसमचित्त से कह रहे हैं कि जैन सिद्धान्तों में जैसा मात्मा, कर्म, परमाणु, भादिषद्रव्य और नवतत्व का स्थावाद शैल और वैज्ञानिक ढंग से प्रतिपादन किया है, इतना ही नहीं पर सुक्ष्म से सुक्ष्म पदार्थ को जिस बारिकी से समझाया है। वैसे अन्य किसी शाबों में उस की गंध भी नहीं पाई जाती है, अगर किसीने थोडा बहुत कहा भी हो तो उन का यश जैन सिद्धान्तो को ही है कि जिस की बदोलत अन्य लोगों को वह प्रसादी मिली है

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