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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
जम्बुकुंवरने ५०० चोरों को भी प्रतिबोध दे कर इस बात परं तत्पर कर दिया कि वे भी दीक्षा लेना चाहने लगे ।
इस प्रकार कुंवर अपने माता पिता, और ८ स्त्रियों के ८ माता पिता आदि को भी प्रतिबोध दे कर सब मिला कर ५२७ स्त्री पुरुषों के साथ बड़े समारोह के साथ सौधर्माचार्य से दीक्षा ग्रहण की । जम्बु मुनि अपने अध्ययन में दक्ष होने के लिये आचार्यश्री ही की सेवा में रहे । चौदह पूर्व और सकल शास्त्रों से पारंगत हो बीस वर्ष पर्यन्त छदमस्थ अवस्था में दीक्षा पाली । वीरात् सं. २० वर्ष आचार्य श्री 1 सौधर्मस्वामीने अपने पद पर सुयोग्य जम्बुमुनि को आचार्य पद दे मुक्ति का मार्ग ग्रहण किया । इनके पीछे बाल ब्रह्मचारी जम्बु आचार्य को कैवल्यज्ञान और कैवल्यदर्शन उत्पन्न हुआ | आपने ४४ वर्ष पर्यन्त भारत भूमिपर विहार कर जैनधर्म का विजयी झंडा यत्र तत्र फहराया | अपने अमृतमय उपदेश से कई भव्यात्माओं का उद्धार किया । पश्चात् अपने पदपर प्रभवस्वामी का आधिपत्य कर वीरात् ६४ संवत् में आपने नाशवान संसार का त्याग कर मोक्षपद को प्राप्त किया ।
[ ३ ] तीसरे पद पर आचार्य श्री प्रभवस्वामी बड़े भारी प्रभावशाली हुए । इनकी जीवनी रहस्यमयी थी। आपका जन्म विद्याचल पर्वत का अधित्यकांतर्गत जयपुरनगर के कात्यायण गोत्रिय नरेश जयसेन के घर हुआ था । आपका लघु भाई विनय घर था । जिसका स्वभाव राजस था। छोटे भाई पर पिता विशेष