Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

Previous | Next

Page 944
________________ साधारण की दुर्दशा. - (१०१) खर्च से काम लिया जाय तो अपनी भावी सन्तान और साधारण समाज का सुखपूर्वक निर्वाह होता रहे, और इसका यश भी उन्हीं धनाढ्यों को मिलेगा कि पहिले पहेल अपने घरों से यह पूर्वोक्त कार्य प्रारंभ करें। अगर आपको एकेक विवाह में दश २ वीस २ और पचास २ हजार का खर्च करने का व्यसन पड गया हो, एकेक मौसर में दश २ वीस २ हजार व्यय करने की आदत पड़ गई हो तो आप उसी द्रव्य को समाज सुधार के लिए अनाथ विधवाओं और आप के स्वधर्मी भाईयों के लिए विद्यालय हुन्नरोद्योग शालाएं स्थापित करवा कर; अनन्त पुन्योपार्जन करे ताकि इस भव और पर भव में आपका कल्यान हो शासनदेव हमारे धनाज्यों को सद्बुद्धि प्रदान करें कि वे पूर्व जमाने के उत्तम विचारों पर खयाल कर, अपनी चंचल लक्ष्मी को समाज हित में लगा कर के भाग्यशाली बनें । (६) समाज में साधारण जनता की दुर्दशा. - पूर्व जमाने में हमारे समाजनेता साधारण जन और गरीब वर्ग की और विशेष लक्ष दिया करते थे, और उनकी स्थिति सुधारने का प्रयत्न सबसे पहिले करते थे कारण धनाढय लोग समाज में बहुत कम हुआ करते हैं अगर गरीब वर्ग की उपेक्षा

Loading...

Page Navigation
1 ... 942 943 944 945 946 947 948 949 950 951 952 953 954 955 956 957 958 959 960 961 962 963 964 965 966 967 968 969 970 971 972 973 974 975 976 977 978 979 980 981 982 983 984 985 986 987 988 989 990 991 992 993 994 995 996 997 998 999 1000 1001 1002 1003 1004 1005 1006 1007 1008 1009 1010 1011 1012 1013 1014 1015 1016 1017 1018 1019 1020 1021 1022 1023 1024 1025 1026