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शिक्षाप्रणाली.
( १५३ )
कौन अगर कोई विद्याप्रेमी अपनी अमूल्य टाईभ खर्च कर देखरेख करे तो भी हमारे आगेवान लोग अपने घरके या न्याति जातिके ऐसे झगड़े लाकरके डाल देते हैं कि मतभेद विचारभेद से उन संस्थाओं को अनेक रोग लगा देते हैं कि स्यात् ही वह अपनी आयुष्य को आगे बढा सके ।
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(१७) शिक्षाप्रणाली:
अब हमारी शिक्षा प्रणाली को भी देखिए कि जैनसमाजमें व्यापार के अधिक संस्कार हैं और व्यापार में ही उन्होंने अपनी उन्नति की थी और आज भी जैनसमाज का विशेष भाग व्यापार पर ही आधार रखता है। आजकी शिक्षामें साधारण व्यापार की भी शिक्षा नहीं है बल्कि उच्चसे उच्च पढाई करने पर भी उनको नोकरी की जगह देखनी पड़ेगी धर्मसंस्कार का तो इतना पतन हो चूका है कि उनके हृदय में सरूसे ही मिथ्या संस्कार डाल दिए जाते है फिर चाहे कुल मर्यादा से जैन क्रिया करे पर तत्वज्ञान में तो वह पृथक् ही जा रहा है । हां गुरुकुलादि कितनकि संस्थाओं में धर्म शिक्षण दीया भी जाता है पर वह बहुत कम, अब हम शिक्षकों की और विचार करते हैं तो साधारण जनता तो अपनी आजीविका निर्वाहनार्थ अधिक पढाई करा नही सके है और धनाढ्य लोगोंके लड़के २-४ वर्ष पढाई करते हैं बाद उनकी सादीकर दिशावर भेज दिए जाते हैं इत्यादि कारणोंसे जितना द्रव्य हम विद्या के लिए खर्च
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