Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 1009
________________ ( १६८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. और सत्यता का इतना तो पोषण किया है कि जिन के पठन पाठन से पापी अधर्मी भी सदाचारी बन अपना कल्यान कर सके । आज अच्छे २ लिखे पढे यूरोपीचन लोंगो की सम्मतिभी मिल रही है कि अपने जीवन को नीतिमय बनाने को जैन कथा साहित्य बड़ा ही उपयोगी है, जैनाचार्योंने धर्म शास्त्र रचने में और लिखने में अपनी जिन्दगी पूर्ण कर दी थी; वह इतने प्रमाण में संग्रह किया था कि बेदान्तियोंने जोर जुल्म से जैन शास्त्रों को नष्ट किये मुस्लमानोंने हजारों लाखों शास्त्र अर्थात् कई भण्डार के भण्डार अग्नि में जला दिए । तथापि भाज संसार भर में जितना जैन साहित्य भास्तित्व रुप में हैं, उतना शायद ही दूसरे के पास हो भाज जो जैन साहित्य प्रकाश में माया हैं उससे कई गुना अभी तक भण्डारों में पडा है वर्तमान जैन समाज को यह एक पद्धति पड गई है कि संसार जागृत हो अपने कार्य क्षेत्र में प्रवृत मान हो जाता है, तब जैनों की निद्रा दूर होती है इसी कारण से अन्य लोगों की अपेक्षा जैन साहित्य बहुत कम प्रकाश में आया है, जो भण्डारों में पडा सड रहा है उसको भी प्रकाश में लाने की बहुत आवश्यकता है। जैनाचार्योंने जैन तीर्थ मन्दिर मूर्तियों की स्थापन भी कम नहीं करवाई थी अर्थात् कोई प्रान्त ऐसा नहीं छोड़ा कि जहां अपना बिहार न हुआ हो, जहां नए जैन न बनाए हो जहां जैन मन्दिरों की प्रतिष्टा न कराई हो, कारण जैसे शास्त्र आलंबन भूत है वैसे मंदिर मूर्ति भी चालम्बनभूत है सम्यक्त्व निर्मल का मुख्य कारण

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