Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 968
________________ दम्पति जीवन. ( १२० ) पढित बहू आवेगी वह आप के घर की कैसी व्यवस्था करेगी आप की सन्तान के कैसे संस्कार डालेगी ? इन अदूरदर्शी विचारों से ही स्त्री समाज अपढित रह गई जिस के फल स्वरूप आज स्त्री समाजने अपने कर्तव्य और धर्म का उल्लंघन किया जिस के जरिये - निर्बलता - जब तक हमारे घरों में गौधन का पालन पोषण था वहांतक घर का काम पीसना पोवना खाएड़ना दलना आदि कार्य एक किस्म की कसरत थी और उन से शरीर स्वास्थ्य अच्छा रहने से विदेशी दवाइयों की भी आवश्यकता नहीं रहती थी । पर जब से स्त्री समाज स्वछन्दचारिणी हो गृहकार्य छोड़ा तब से वह इतनी निर्बल बन गई कि अपने बाल बच्चों का लालन पालन भी मजुरों के शिर जा पड़ा है और आप बिमारी से फुरस्त नहीं पाती है । निर्लजता- - आज स्त्री समाज फैसन की फीतूरी में इतनी तो मशगूल बन गई है कि उनके बारीक कपड़ों की पोषाक से मानों लज्जा धर्म को तो तिलाञ्जली दे रक्खी है उनके अंगोपाङ्ग दूर से ही जलक रहे हैं दूसरे उनके गालगीत मानों वैश्याओं को भी लज्जित कर रहे हैं। क्या यह कुलिन स्त्रीयों के लिये निर्लज्ज - ताकी बात नहीं है ? निर्दयता – श्री समाज को यह खबर नहीं है कि किस खूनका पानी करनेसे पैसे पैदा होते हैं पर बहतो विचारे पतियों

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