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शुद्धि और संगठन. . (१३७) जा रही है तो फिर इस उन्नति का फल किसना और कहां तक ? अगर साथ में यह भी प्रकाशित करवाते कि हमारे इतने भाचार्यों की अध्यक्षता में दस वर्षों के अन्दर ७५००० जैन कम हुए यह उन के कर्मों की गति है हमने तो १० वर्षों के अन्दर चालीस स्वामीवात्सल्यों में खूब लडु उडाए, और मौजमजा किया करते रहेंगे। ___समाज के अग्रेसरों ! जरा भांख खोल कर के देखो, विद्वान लोग आप की हांसी करते हुए अपना क्या अमिप्राय प्रगट करते हैं ? ." Jains continue to decrease this community alone of all in the province decreased and there seems no dying out. ”
अर्थात्-जैन इ० स० १८८१ की साल से घटते ही गए हैं, देशभर में यह एक ही जाति घटी है इस में शंका नही कि यह जाति मृत्यु की तरफ जा रही है। .. मर्दुम सुमारी से यह पत्ता मिलता है कि इ० स० १८८१ में हिन्दूस्थान की पाबादी, करीब २५ क्रौड थी, वह बढती बढती इ० स० १९२१. में बतीस क्रौड से अधिक बढ गई । तब जैन संख्या इ. स. १८८१ में पनरह लाख थी, वह इ० स० १९२१ में बारह लाख से ही कम रह गई। हिसाब लगाए कि ४० वर्ष में हिन्दूस्थान में सात क्रोड जनता बढ गई, सब जैन चालीस वर्ष में तीन लाख से अधिक घट गए । क्या पंचम काल का असर केवल जैन जातियों पर ही पड गया ? यह दोष तो