Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 979
________________ (१३८) जैन जातिमहोदय प्रकरण छहा. हम कब दे सक्ते हैं कि पुरुषार्थ करने पर मी निष्फल निवडे तब, " भवितव्यता " कह सक्ते हैं पर हम खुद हमारी जन संख्या कम करने के सैकड़ों कारण बगल में ले बैठे हैं, फिर पांचवें पारे का नाम लेकर जनता को हतोत्साही क्यों बनावे ? क्या यह महा पाप नही है ? पूर्वाचार्य अनेक परिसह, संकट, और कठिनाइयों का सामना करते हुए देश विदेश में परिभ्रमण कर माम पब्लिक और गजा महाराजाभों की सभा में व्याख्यान दे कर जैन तत्वज्ञान और आचार ज्ञान से उन महानुभावों के चित कों पवित्र जैन धर्म की और आकर्षित कर उन को जैन धर्म की शिक्षा दिक्षा देकर जैन संख्या में वृद्धि करते थे, उन के पास महावीर प्रभु के उपदेश के सिवाय और कोई सैना नहीं थी, पर उन के हृदय में जैनधर्म की विजली जरूर थी कि वे जहां जाते वहां ही जैनधर्म का झण्डा फरकाया करते थे, इसी से ही जैन जातियों का महोदय हुआ, जैन जनता की संख्या में वृद्धि हुई जैन धर्म का पर चारों ओर गर्जना करता था आज हमारे जैनाचार्यों की सापर्वाही कहो चाहे सुखशैलीयापना कहो कि वह जरासा भी कष्ट सहन नहीं करते हैं । एक देश को बोड कर दूसरे देश में जाने के लिए इतने घबराते हैं कि न जाने वहां हमारे मन इच्छित सुख मिलेंगे या नहीं, इतना ही नहीं पर एक उपाश्रय से दूसरे उपाश्रय में जाने में ही बना भारी संकोच रखते हैं, तो उन से यह भाशा रखना ही व्यर्थ है कि वे राजा महाराजाभों की सभा

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