Book Title: Jain Jati mahoday
Author(s): Gyansundar Maharaj
Publisher: Chandraprabh Jain Shwetambar Mandir

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Page 965
________________ ( १२४ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. पर व्यभिचार जैसे दोष क्यों लगाए जाते हैं ? इन सब प्रश्नों का एक उत्तर हमारे भारतीय पुरुष वर्ग है कि उन्होंने अज्ञानता से कहो चाहे स्वार्थवृत्ति से कहो पर जब से स्त्रीशिक्षा की तरफ उपेक्षा कर उन को अपठित रख दी और उन के संस्कार भी ऐसे डाल दिए कि पूर्वोक्त सर्व अवगुन होना कोई आश्चर्य की बात नहीं हैं । उन बिचारियों के लिए धर्म के तो मानों द्वार ही बन्ध कर दिए गये है बात भी ठीक हैं कि अपठितों के लिए धर्म तत्व का ज्ञान हो भी कहां से? स्त्री समाज के पतनने केवल स्त्री समाज की ही दुर्दशा नहीं की है, परन्तु अखिल भारत का पतन हो चूका है अब भी हम दावे के साथ कह सक्ते हैं कि हमारी माताश्रों मे उन्ही सतियों का खून मौजूद है पर वह दोषित रूप में है अगर सद्ज्ञानरूपी अग्नि मे उस को शुद्ध किया जाय तो वह दिन हमारे लिए तैयार है कि वीर वीराङ्गना भारत का पुनः उद्धार कर सके पर हमारे पुरुष वर्ग में इतनी उदारता कहां है कि वह स्त्री समाज को आर्य पद्धति से शिक्षा देकर के उन को वीराङ्गनाएं बना | स्त्री शिक्षा के अभाव उनकी लग्न पद्धति का भी पतन हो गया जो स्वयम्वर या रूप गुण उम्मर आदि की परिक्षा पूर्वक लग्न किया जाता था आज उन बिचारियों कों चूं करने का भी अधिकार नहीं है चाहे वर रोगी हो, निरोगी हो सदाचारी हो दुराचारी हो स्वरूपवान हो कुरूपवान हो, उम्मर में बराबर हो या न्यूनाधिक हो स्वधर्मी हो विधर्मी हो प्रकृति का शोम हो या

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