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जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा.
इस प्रकार २४ वर्षकी आयु में श्रापका राज्यभिषेक हुआ । १३ वर्ष पर्यन्त प्रापने कलिंगाधिपति रह कर सुचारु रूप से शासन किया । अन्तमें अपने राज्य कालमें दक्षिण से लेकर उत्तर लॉ राज्य का बिस्तार कर आपने सम्राट् की उपाधि भी प्राप्त की थी आपने अपना जीवन धार्मिक कार्य करते हुए बिताया । अन्त में आपने समाधि मरण द्वारा उच्च गति प्राप्त की । ऐसा शिलालेख से मालूम होता है।
यह शिलालेख कालिंग देश, जिसे अब सब उड़ीसा कह कर पुकारते हैं, के खण्डगिरि ( कुमार पर्वत ) की हस्ती नाम्नी गुफा से मिला था । यह शिला लेख १५ फुट के लगभग लम्बा तथा ५ फीट से अधिक चौड़ा है |
यह शिलालेख १७ पंक्ति में लिखा हुआ है । इस शिलालेख की भाषा पाली भाषा से मिलती है । यह शिलालेख कई व्यक्तियाँ के हाथ से खुदवाया हुआ है। पूरे सौ वर्ष के परिश्रम के पश्चात् इस का समय समय पर संशोधन भी किया है । अन्तिम संशोधन पुरातत्वज्ञ पं. सुखलालजीने किया है । पाठकों के अवलोकनार्थ हम उस लेख की नकल यहाँ पर दे के साथ में उन का हिन्दी अनुवाद भी सरल भाषा में पंक्ति बार दे देते हैं आशा है कि इसे मनपूर्वक पढ़ कर अपने धर्म के गौरव को भली भाँति से समझेंगे ।