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जैन जाति महोदय प्रकरण छला. हमा जिस कारण समुदायिक शक्ति के टुकडे टुकडे हो भनेक विभागमे विभाजित हो गये वाडा बन्धीरूप क्षयरोग की भयंकरतासे समाज संगठन और समाज संख्या मृत्यु के मुहमे जा पडी। अन्यलोगोंने ज्यां ज्यों कुरूढियों को निकालते गये त्या त्यां जैन अप्रेसरोंने उनपर दयाभाव लाकर अपनी समाजमें वडा ही भादरसे स्थान देते गये । धनाढ्य लोगोंने उन कुरूढियों का ठीक पालन पोषणकर उनके पैर खुब मजबुत जमा दिया उन कुप्रथाभोंने हमारी समाजपर इतना तो भयंकर प्रभाव गला कि जिसको छीन भिन्नकर तथा कायर कमजोर और क्लेश कदाग्रह का घर बना दीया, हमारी जन संख्यापर भी उसने खुब छापा मारा, कि वह दिन प्रतिदिन कम होती गई इतना ही नहीं पर हमारी पतित दशा का मुख्य कारण ही वह कुरूढिय है हमारा अज्ञान है कि हम हमारा दोष को नहीं देखते है पर वह दोष हमारे महान् उपकारी पूर्वाचार्यपर लगाने को तय्यार हो जाते है दर असल यह दोष उन संकुचित विचारवाले अभिमानी अग्रेसरो का है कारण जो समाज की दुर्दशा करनेवाली कुरूढिये सब से पहले अप्रेसर और धनाढ्यों के घरों मे ही जन्म धारण किया था वास्ते उनके ख्याल के बहार तो न होगा ? पर आज उन धनाढ्यो के घरोंसे चलाई हुइ प्रथाओ धीरे धीरे साधारण जनता को भी अपने पैरो के तले धवा दीया अर्थात् सर्वत्र फैली हुई है। वास्ते शायद हमारे अप्रेसर व धनाडयो को विस्मृती हो गई हो तो हम याद दीलाने का प्रयत्न भी करेंगे कि समाज को कायर कमजोर बना के