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जैन समाजकी वर्तमान दशापर प्रश्नोत्तर. (२१) (२) प्रश्न–श्रीमान् रत्नप्रभसूरीजी आदि प्राचार्यों ने सत्रीय जैसे बहादुर वीर वर्ण को तोड कर अनेक जातियों व समुदाय में विभक्त कर दिया और उस समाज को कायर कमजोर बना कर के उस की सामुदायिक शक्ती को चकनाचूर कर दिया ?
उत्तर-आप पहिले प्रश्न के उत्तर मैं पढ चूके है कि श्राचार्यश्रीने न तो किसी वर्ण को तोडा और न उन्होने भिन्न भिन्न जाति ही बनाई थी। उन महर्षियोंने तो भिन्न २ जाति वर्ण में विभक्त जनता को समभावी बनाके महाजन संघ की स्थापना कर उनकी संगठ्ठन शक्ती को महान् बलवान् बनाई थी, भिन्न २ जातियों बना के उनकी शक्ति को चकचूर कर देने का दोष प्राचार्यश्री पर लगाने के पहिले उनके इतिहाम को पढ लेना बहुत जरूरी बात है: कारण एक महान उपकारी महात्मा पर असत्याक्षेप कर वनपाप से बच जावें । __ . वास्तव में आचार्यश्रीने दुराचार सेवित जनता पर दया भाव लाकर के उनके खान पान प्राचार व्यवहार शुद्ध कर " महाजन संघ” -रूपी एक संस्था स्थापित की थी। तत्पश्चात् उस संस्था के लोग श्रीमालनगर से अन्यत्र जाकर निवास करने से लोग उनको ' श्रीमाल' कहने लग गए । इसी माफिक उपकेशपुर से अन्यत्र जाने से वह ' उपकेश' (ओसवाल ) वंश कहाने लगे, और प्राग्वट नगर से “ प्राग्वट' ( पोरवाड ) वंश प्रसिद्ध हुए। कालान्तर पूर्वोक्त वंशो से एकेक कारण पाकर भिन्न