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सम्प्रति राजा.
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जय
सूरीजी के उपदेश को मान हृदय में " यतो धर्मस्ततो " के सिद्धान्त के सार को ठान राजाने उसी समय रथयात्रा में सम्मिलित हो, यह उद्घोषणा करदी कि मेरे राज्य में आज से कोई व्यक्ति पशु एवं पक्षी का शिकार नहीं करे । माँस और मदिरा के भक्षक व पियक्कड़ मेरे राज्य में नहीं रहने पायेंगे । सम्प्रति नरेशने उसी दिन से लोक हितकारी परम पुनीत जैनधर्म का अवलम्बन ले रात दिन इसी के प्रचार का प्रबल प्रयत्न करने में संलग्न होने का निश्चय किया । जैन धर्मावलम्बी श्रावकों को हर प्रकार से सहायता देने की व्यवस्था की गई। जैन शास्त्रका
तो यहाँ तक लिखा है कि सम्प्रति नृपने जैनधर्म का इतना प्रचार किया कि उसने सवाक्रोड पाषाण की प्रतिमाएं, ९५००० सर्व धात की प्रतिमाएँ तथा सवा लाख नये मन्दिर बनवाए। आपने इस के अतिरिक्त ६०००० पुराने मन्दिरों का जिर्णोद्धार कराया १७००० धर्मशालाऐं, एक लाख दानशालाऐं, अनेक कूए, तालाब, बाग चौर बगीचे, औषधालय और पथिकाश्रम बना कर प्रचुर द्रव्य का अनुकरणीय सदुपयोग किया। राजा सम्प्रतिने जो सिद्धाचलजी का विशाल संघ निकाला था उस में सोना चांदी के ५००० देहरासर, पन्ना माणिक आदि रत्नमणियों की अनेक प्रतिमाऐं तथा ५००० जैन मुनि थे । सब मिला कर उस संघ के ५ लाख यात्रि थे । उसने यह प्रतिज्ञा भी ले रक्खी थी कि नित्यप्रति कम से कम एक जिन मन्दिर बन कर सम्पूर्ण होने का समाचार सुन कर ही मैं भोजन किया करूंगा । इस से विदित