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आवार्य भद्रबाहु सूरि.
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पूछा मुनिराज ! आज नगर के कोने कोने में आनंद मनाया जा रहा है ऐसे समय क्या आप उदासीन ही रहेंगे । कहिये इस उदासी - नता का कारण क्या हैं ? आचार्यश्रीने उत्तर दिया कि राजा, वास्तव में आप जो हर्ष मना रहे हैं वह अस्थायी एवं मिथ्या है। राजाने आवेशमें आकर कहा 4. श्राप समझ कर कहिये. आज शोक की कौनसी बात है ? " आचार्यश्रीने कहा राजन् ! आज तो शोकका दिन भले ही न हो पर शोक का दिन दूर भी नहीं है । आप का यह अभिनव पुत्र सात दिन के पश्चात् बिल्ली से मारा जायगा । राजाने विचार किया कि मैं ऐसा प्रबंध कर दूँगा कि मेरे महल में एक भी बिल्ली नहीं आ सकेगी । इतने पर कुंवर को एक कोटडी में बंद भी कर रक्खँगा फिर मुझे किस बात का भय है ? राजाने प्रबंघ भी पूरा किया । बिल्ली का कुँवर तक पहुँचना अस म्भव कर दिया । राजाने सोचा की पहले बाराह मिहिर ने जो बात कही है कि कुँवर १०० वर्ष तक जिन्दा रहेगा, यही बात सच्ची होगी । जैन मुनिने जो बिल्ली का निमित्त बताया है इससे पुत्र की मृत्यु कैसे हो सकती है ? मैंने चोर को न मार चोर की मा को मारा है । बिल्ली ही नहीं तो मृत्यु भी नहीं । न होगा बांस न बजेगी बंसरी । सातवें दिन विशेष प्रबंध रक्खा गया । पर होनहार कब टल सकती है। जिस कमरे में कुँअर बंद किया गया था उस कमरे के किंबाड़ के पीछे खातीने अर्गला के ऊपर लकड़ी की विल्ली का आकार बनाया था ।
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जब राजाने सातवें दिन के बीतते समय दरवाज़ा खोला तो