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( १६०) जैन जाति महोदय प्रकरण पांचवा. पुत्र में रक्खी । वैसे तो मगध के सारे राजा बनी हुए हैं पर इसके शासन काल में जैनधर्म उन्नति की और अधिक प्रवाह से प्रगति करने लगा। " यथा राजा तथा प्रजा" लोकोक्ति के अनुसार जनता भी जैनधर्म की अनुयायिनी बनी । दूसरी ओर वेदान्तियों और बोहों का ज़ोर भी बढ़ रहा था। तथापि जैनाचार्य साबित कदम थे । म्याद्वाद सिद्धान्त और आहिंसा परमोधर्म के भादर्श के भागे मिध्यात्वियों की कुछ भी नहीं चलती थी। राजा उदाई तो राज्य की अपेक्षा धर्म का विशेष ध्यान रखा करता था। इसकी इस कद्र प्रवृति देख कर विधमिर्यों के पेट में चूहे कूदने लगे । उन्होने एक अधम्म निर्दय किसी आदमी को धार्मिक द्वेष में अंधे हो कर जैन मुनि के वेष में उदाई के पास भेजा । उस द्वेषीने जाकर छल से उदाई का वध कर शैशु वंश का ही अन्त कर दिया। ,
शैशु नाग वंशियों के पश्चात् मगध देश का राज्य नन्द वंश के हस्तगत हुआ। पाटलीपुत्र राजधानी में नंद वर्धन राजा सिंहासनारूढ़ हुआ । पहिले यह ब्राह्मण धर्मी था। कदाचित इसीने षटयंत्र रच महाराज उदाई का वध कराया हो । इस नृपतिने वेदान्त मत का खूब प्रचार किया । वह जैन और बौद्ध मत का कट्टर विरोधी था। मरणोन्मुख होते हुए ब्राह्मण धर्म को इसी नरेशने जीवन प्रदान किया था । तथापि जैन और बौद्धों का ज़ोर कम नहीं हुमा । शायद पिछली अवस्था में जैन मुनियों के समागम से उसने जैनधर्म स्वीकार कर लिया हो और जैन धर्म का